पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/८२

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(६४) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र के प्रसिद्ध होमियोपथिक चिकित्सक थे, वही पहिले डाक्तर काशी में पाए और उनसे भारतेन्दु जी से बडा बन्धुत्व था। इनके पीछे डाक्तर ईश्वरचन्द्र रायचौधरी इनके चिकित्सक थे। अन्त में भी इन्हीं की दवा होती थी। इन्हें भारतेन्दु जी सवा नागरी अक्षर और बङ्ग-भाषा मे पत्र लिखा करते थे। "कविता-वद्धिनी-सभा" "कविता-वद्धिनी-समा" वा कविसमा का जन्म सम्वत् १९२७ मे हुआ था जिससे कितने ही गुणियो का मान बढाया जाता था और कितने ही कवियो को प्रशसापत्र दिए जाते थे, कितने ही नवीन कवि प्रोत्साहित करके बनाए जाते थे। पण्डित अम्बिकादत्त व्यास साहित्याचाय को “पूरी अमी की कटोरिया सी चिर- जीवी रहौ विकटोरिया रानी" पूर्ति पर प्रशसापत्र तथा सुकवि की पदवी दी गई थी, जिसका प्रभाव उक्त पण्डित जी पर कैसा कुछ हुआ यह उनके चरित्रालोचन ही से प्रकट है। उस समय कवियो का प्रभाव नहीं था, सेवक, सरदार, नारायण, हनुमान, दीनदयाल गिरि, दत्त (पण्डित दुर्गादत्त गौड), द्विज मन्नालाल, प्रादि अच्छे प्रच्छे कवि जीवित थे, प्राय सभी पाते और विलक्षण समागम होता था। इससे जो प्रशसापत्र दिया जाता था वह यह था -- प्रशंसापत्र। यह प्रशसापत्र को कवि सभा की ओर से इस हेतु दिया जाता है कि आज की समस्या को (जो पूण करने के हेतु दी गई थी) इन्हो ने उत्तमता से पूर्ण किया और दत्त विषय की कविता इन ने प्रशसा के योग्य की है इस हेतु मिती काव्य वद्धिनी सभा के सभापति, सभाभूषण, सभासद और लेखाध्यक्षो ने अत्यन्त प्रसन्नता पूथ्वक प्रादर से इन को यह पत्र दिया है। मि० सवत् १९२७ क है. सभापति लेखाध्यक्ष - - - . - -