पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/८३

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (६५) मुशायरा यद्यपि ये हिन्दी के जन्मदाता और उर्दू के शत्रु कहे जाते है, परन्तु गुण ग्रहण करने मे शत्रु मित्र का विचार नहीं करते थे। उर्दू कविमो के प्रोत्साहन के लिये सन् १२८४ हिज्री (सन् १८६६ ई०) मे इन्होने "मुशाइरा" स्थापित किया था, जिसमे उस समय के शाइर इकटठे होते और समस्या पूर्ति करते । स्वय बाबू साहब भी कविता (उर्दू) करते थे। अपना नाम उर्दू कविता में "रसा" (पहुँचा हुआ) रखते थे। धर्म सभा तथा तदीय समाज कांशीराज महाराज की ओर से काशी मे "धम सभा" सस्थापित हुई थी । इसके द्वारा परीक्षाएँ होती थीं, अनेक धर्म काय होते थे, इस के ये सम्पादक और कोषाध्यक्ष नियुक्त हुए थे। सम्बत् १९३० मे इन्होने "तदीय समाज" स्थापित किया था। यद्यपि यह समाज प्रेम और धर्म सम्बन्धी था, परन्तु इस से कई एक बडे बडे काम हुए थे। इसी समाज के उद्योग से दिल्ली दर्बार के समय गवर्मेण्ट की सेवा मे सारे भारत- वर्ष की ओर से कई लाख हस्ताक्षर कराके गोबध बन्द करने के लिये अर्जी गई थी। गोरक्षा के लिये 'गोमहिमा' प्रभूति ग्रन्थ लिख कर बराबर ही आन्दोलन मचाते रहे। लोग स्थान स्थान में 'गोरक्षिणी सभाओं' तथा गोशालानो के स्थापित होने के सूत्रधार मुक्तकठ से इनको और स्वामी दयानद सरस्वती को मानते है। इस समाज ने हजारो ही मनुष्यो से प्रतिज्ञा लेकर मद्य और मास का व्यवहार बन्द कराया था। उस समय तक यहाँ कहीं Total Abstinence Society का जन्म भी नहीं हुआ था। इस समाज की ओर से हजारो पुस्तके दो प्रकार की चेक बही के भाँति छपवाकर बाँटी गई थीं, जिनमें से एक पर दो साक्षियो के सामने शपथपूवक प्रतिज्ञा लिखाई जाती थी कि मै इतने काल तक शराब न पीऊँगा और दूसरे पर मास न खाने की प्रतिज्ञा थी। कुछ दिन तक इसका बडा जोर था। इस समाज ने बहुत से लोगो से प्रतिज्ञा कराई थी कि जहां तक