पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/८६

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(६८) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र "श्री ब्रजराज समाज को तुम सुन्दर सिरताज । दीजै टिकट नेवाज करि नाथ हाथ हित काज॥" (२२ जनवरी १८७४) स्वय इस समाज मे तदीय नामाङ्कित अनन्य वीर वष्णव की पदवी ली थी। उसका प्रतिज्ञा पत्र यहाँ प्रकाशित होता है -- "हम हरिश्चन्द्र अगरवाले श्री गोपालचन्द्र के पुत्र काशी चौखम्भा महल्ले के निवासी तदीय समाज के सामने परम सत्य ईश्वर को मध्यस्थ मानकर तदीय नामाङ्कित अनन्य वीर वैष्णव का पद स्वीकार करते है और नीचे लिखे हुए नियमो का प्राजन्म मानना स्वीकार करते हैं १ हम केवल परम प्रेम मय भगवान श्री राधिका रमण का भी भजन करेंगे २ बडी से बडी आपत्ति में भी अन्याश्रय न करेंगे ३ हम भगवान से किसी कामना के हेतु प्रार्थना न करेंगे और न किसी और देवता से कोई कामना चाहेंगे ४ जुगल स्वरूप मे हम भव दृष्टि न देखेंगे ५ वैष्णव मे हम जाति बुद्धि न करेंगे ६ वैष्णव के सब प्राचार्यों में से एक पर पूर्ण विश्वास रक्खेंगे परन्तु दूसरे प्राचार्य के मत विषय मे कभी निन्दा वा खण्डन न करगे। ७ किसी प्रकार की हिंसा वा मास भक्षण कभी न करेंगे ८ किसी प्रकार की मादक वस्तु कभी न खायेंगे न पीयेंगे ६ श्री मद्भगवद्गीता और श्री भागवत को सत्य शास्त्र मानकर नित्य मनन शीलन करेंगे। १० महाप्रसाद मे अन्न बुद्धि न करेंगे। ११ हम आमरणान्त अपने प्रभु और प्राचार्य पर दृढ विश्वास रखकर शुद्ध भक्ति के फैलाने का उपाय करेंगे। १२ वैष्णव माग के अविरुद्ध सब कम करेगें और इस मार्ग के विरुद्ध श्रौत स्मात वा लौकिक कोई कम न करेगें। १३ यथा शक्ति सत्य शौच दयादिक का सवदा पालन करेंगे। १४ कभी कोई बाद जिससे रहस्य उद्घाटन होता हो अनधिकारी के सामने न