पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/९१

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (७३) का रस्सा पर के अगूठे मे बाँधकर तोड डालते, मोटे से मोटे लोहे के रम्भो को मोम की बत्ती की तरह दोहरा कर देते, दो कुसियो पर लेटकर छाती को अधड मे रखकर उस पर छ इञ्च मोटा पत्थर तोडवा डालते, नारियल की जटा सहित सिर पर मार कर तोड डालते निदान मानुषी पौरुष की पराकाष्ठा थी। पण्डितवर बापूदेव शास्त्री जी को नवीन पञ्चाङ्ग की रचना पर दुशाले प्रादि से पुरष्कृत किया था। प्रसिद्ध वीणकार हरीराम वाजपेई कितने ही दिनो तक इनसे ५०)रु० मासिक पाते रहे। निदान अपने वित्त से बाहर गुणियो का आदर करते। इनके अत्यन्त कष्ट के समय में भी कोई गुणी इनके द्वार से विमुख न जाता। पुरातत्त्व पुरातत्त्व के अनुसन्धान की ओर इनकी पूरी रुचि थी। इनके द्वारा डाक्तर राजेन्द्रलाल मित्र को बहुत कुछ सहायता मिलती थी। इनके अविष्कृत कितने ही लेख “एशियाटिक सोसाइटी" के 'जर्नल' तथा 'प्रोसीडिङ्ग' मे छपे हैं । इनके पुस्तकालय की प्राचीन पुस्तकों से उक्त सोसाइटी को बहुत कुछ सहायता मिलती थी। गवन्र्मेण्ट द्वारा प्रकाशित सस्कृत ग्रन्थो की सूची तथा पुरातत्त्व सम्बन्धी अन्य इन उपकारो के बदले गवर्मेण्ट इन्हें उपहार देती थी। इन्होने एक अत्यन्त प्राचीन भागवत को 'एशियाटिक सोसाइटी मे उपस्थित करके इस बात का निणय करा दिया कि श्रीमद्भागवत वोपदेव कृत नहीं है। प्राचीन सिक्को और अफियो का संग्रह भी अमूल्य किया था, परन्तु खेद का विषय है कि किसी लोभी ने उसे चुराकर उनको अत्यन्त ही व्यथित कर दिया । अब भी पैसे रुपए तथा स्टाम्प का अच्छा संग्रह है। पुरातत्व विषयक अनेक लेख भी लिखे हैं। परिहास प्रियता परिहास-प्रियता भी इनकी अपूव थी। अंगरेजी मे पहिली अप्रैल का दिन मानो होली का दिन है । उस दिन लोगो को धोखा देकर मूर्ख बनाना बुद्धिमानी