पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/९२

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(७४) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र का काम समझा जाता है। इन्होने भी कई बेर काशीवासियो को योही छकाया था। एक बेर छाप दिया कि एक यूरोपीय विद्वान् प्राए हैं जो महाराजा विजियानग्रम् की कोठी मे सूर्य चन्द्रमा आदि को प्रत्यक्ष पृथ्वी पर बुलाकर दिखलावैगे। लोग धोखे मे गए और लज्जित होकर हंसते हुए लौट पाए । एक बेर प्रकाशित किया कि एक बडे गवैये पाए हैं, वह लोगो को 'हरिश्चन्द्र स्कूल मे गाना सुनावैगे। जब हजारो मनुष्य इकट्ठे हो गए तब पर्दा खुला, एक मनुष्य विचित्र रङ्गो से मुख रंगे, गदहा टोपी पहिने, उलटा तानपूरा लिए, गदहे की भॉति रेक उठा । एक बेर छाप दिया था कि एक मेम रामनगर से खडाऊँ पर चढकर गङ्गा पार उतरेगी। इस बेर तो एक भारी मेलाही लग गया था। परन्तु सन्ध्या को कोलाहल मचा कि "एप्रिल फूल्स"। लडकपन मे भी अपने घर के पीछे अँधेरी गली मे फासफरस से विचित्र मूर्ति और विचित्र आकार लिखकर लोगो को डरवाते थे। मित्रो के साथ नित्य के हास परिहास उनके परम मनोहर होते थे। श्री जगन्नाथ जी को जो फूल की टोपी पहिनाई जाती है वह इतनी बड़ी होती है कि मनुष्य उसमे छिप जाय, इन्होने यह कौतुक किया कि आप तो टोपी मे छिप गए और छोटे भाई बाबू गोकुल- चन्द्र ने लोगो से कहा कि श्री जगदीश का प्रत्यक्ष प्रभाव देखो कि टोपी आप से आप चलती है, बस टोपी चलने लगी लोग देखकर अचम्भे मे आ गए। अन्त मे आपने टोपी उलट दी तब लोगो को भेद खुला। उदारता-धन के बिना कष्ट इनको उदारता जगत्-प्रसिद्ध है। हम केवल दो चार बातें उदाहरण स्वरूप यहाँ लिखते हैं। हिस्सा होने के थोडे ही दिन पीछे महाराज बितिया के यहाँ से इनके हिस्से का छत्तीस हजार रुपया वसूल होकर आया। इन्होने उसको अपने दर्बारी एक मुसाहिब के यहाँ रख दिया। कुछ थोडा बहुत द्रव्य उसमे से प्राया था कि उन्होने रोते हुए पाकर कहा "हुजूर | मेरे यहाँ चोरी हो गई। आपके रुपये के साथ मेरा भी सवस्व जाता रहा।" उनके रोने चिल्लाने से घबराकर इन्होने कहा "तो रोते क्या हो गया सो गया, यही गनीमत समझो कि चोर तुम्हें उठा न ले गए"। चलिए मामला ते हुआ। लाख लो नाही हे