पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/९६

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(७८) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र होइ ले रसाल तू भलेई जगजीव काज, पासी ना तिहारे ये निवासी कल्पतरु के॥१॥ काशिराज के दर्बार मे एक समस्या किसीने दी थी, किसी से पूर्ति न हुई, ये प्रागए। महाराज ने कहा "बाबू साहब, इस समस्या की पूर्ति पाप कीजिए, किसी कवि से न हो सकी"। इन्होने तुरन्त लिखकर सुना दी, मानो पहिले ही से याद थी। कवियो को बुरा लगा। एक बोल उठे "पुराना कवित्त बाबू साहब को याद रहा होगा"। बस इन्हें क्रोध प्रागया, दस बारह कवित्त तुरन्त बनाते गए और कविजी से पूछते गए "क्यो कविजी। यह भी पुराना है न?" अन्त मे काशिराज के बहुत रोकने पर रुके । इनके इन्हीं गुणो से काशिराज इनपर मोहित थे। इनसे अत्यन्त स्नेह करते थे। काशिराज को सोमवार का दिन धातवार था, उस दिन वह किसी से नहीं मिलते थे। एक बेर इन्होने भी लिख भेजा कि "प्राज सोमवार का दिन है इससे मैं नहीं पाया" । काशिराज ने उत्तर में यह दोहा लखा-- "हरिश्चन्द्र को चन्द्र दिन तहाँ कहा अटकाव । प्रावन को नहिं मन रह्यो इहो बहाना भाव ॥" इस के अक्षर अक्षर से स्नेह टपकता है। सुप्रसिद्ध गटू लाल जी इन की समस्यापूर्ति पर परम प्रसन्न हुए थे। वृन्दाबनस्थ श्री शाह कुन्दनलाल जी की समस्या पर इन की पूर्ति और इन की समस्या पर उन की पूर्ति देखने योग्य है। काशिराज के पौत्र के यज्ञोपवीत के उपलक्ष मे "यज्ञोपवीत परम पवित्र" पर कई श्लोक बडे धूमधाम के कोलाहल के समय बात की बात में बनाए थे। केवल समस्या पूर्ति ही तत्काल नहीं करते थे, ग्रन्थ रचना में भी यही दशा थी। 'अन्धेर नगरी' एक दिन मे लिखी गई थी। 'विजयिनी विजय वजयन्ती' टाउनहाल की सभा के दिन लिखी गई थी। बलिया का लेकचर और हिन्दी का लेकचर (पद्य- मय) एक दिन मे लिखा गया। ऐसे ही उनके प्राय काम समय पर ही हुआ करते थे, परन्तु आश्चर्य यह है कि उतनी शीघ्रता मे भी त्रुटि कदाचित ही होती रही हो। देशहित नसो मे भरा हुआ था। कदाचित् ही कोई ग्रन्थ इनके ऐसे होगे जिसमे किसी न किसी प्रकार से इन्हो ने देशदशा पर अपना फफोला न निकाला हो। कहाँ धर्मसम्बन्धी कविता "प्रबोधिनी" और कहाँ "बरसत सब ही बिधि बेबसी