पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/९७

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (७६ ) अब तो जागो चक्रधर"। अपने बनाए ग्रन्थो मे निम्नलिखित ग्रन्थ इन्हें विशेष रुच ते थे-- काव्यो मे--प्रेमफुलवारी नाटको मे--सत्यहरिश्चन्द्र, चन्द्रावली धर्म सम्बन्धी मे--तदीयसर्वस्व ऐतिहासिक मे-काश्मीर कुसुम (इसमे बडा परिश्रम किया था) देशदशा मे--भारतदुदशा। एक दिन एक कवित्त बनाया। जिस के भावो के विषय मे उन का विचार यह था कि ये नए भाव हैं, परन्तु मैने इन्हीं भावो का एक कवित्त एक प्राचीन सग्रह मे देखा था, उसे दिखाया, इन्होने तुरन्त उस अपने कवित्त को (यद्यपि उसमे प्राचीन कवित्त से कई भाव अधिक थे) फाड डाला और कहा "कभी कभी दो हृदय एक हो जाते हैं। मैने इस कवित्त को कभी नहीं देखा था, परन्तु इस कवि के हृदय से इस समय मेरा हृदय मिल गया, प्रत अब इस कवित्त के रहने की कोई प्राव- श्यकता नहीं"। वह प्राचीन कवित्त यह था।-- "जैसी तेरी कटि है तू तैसी मान करि प्यारी, ___ जैसी गति तैसी मति हिय तें विसारिए । जैसी तेरी भौंह तैसे पन्थ पै न दीजै पाँव, ___ जैसे नैन तैसिएँ बडाई उर धारिए। जैसे तेरे ओठ तैसे नैन कीजिए-न, जैसे, कुच तैसे बैन मुख तें न उचारिए । एरी पिकबैनी । सुनु प्यारे मन मोहन सो, जैसी तेरी बेनी तैसी प्रीति बिसतारिए ॥१॥" उनका कथन था कि "जैसा जोश और जैसा जोर मेरे लेख मे पहिले था वैसा अब नहीं है, यद्यपि भाषा विशेष प्रौढ और परिमार्जित होती जाती है, तथापि वह बात अब नहीं है"। वास्तव मे सन ७३।७४ के लगभग के इन के लेख बडे ही उमङ्ग से भरे और जोश वाले होते थे। यह समय वह था जब कि ये प्राय राम- कटोरा के बाग मे रहते थे। प्रस्तु, इन की इस अलौकिक शक्ति तथा इन के ग्रन्यो की रचना पर मालोचना की जाय तो एक बडा ग्रन्थ बन जाय ।