पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(८०) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र ग्रन्थ रचना यह हम पहिले कह पाए है कि जिस समय इन्होने हिन्दी की ओर ध्यान दिया, उस समय तक हिन्दी गद्य मे कुछ न था। अच्छे ग्रन्थो मे केवल राजा लक्ष्मणसिह का शकुन्तलानुवाद छपा था और राजा शिवप्रसाद के कुछ ग्रन्थ छपे थे। इन्होने पहिले पहिल शृङ्गार रस की कविता करनी प्रारम्भ की और कुछ धम सम्बन्धीय ग्रन्थ लिखे। उस समय कुछ निज रचित और कुछ दूसरो के लिखे ग्रन्थ तथा कुछ सग्रह इन्होने छपवाए। 'कार्तिक कम विधि', 'मागशीर्ष महिमा', 'तहकीकात पुरी की तहकीकात', 'पञ्चकोशी के मार्ग का बिचार', 'सुजान शतक', 'भागवत शडा निरासवाद' प्रादि ग्रन्थ सन् १८७२ के पहिले छपे। इसी समय 'फूलो का गुच्छा' लावनियो का ग्रन्थ बनाया। उस समय बना- रस मे बनारसी लावनीबाज़ की लावनियो का बडा चर्चा था। उसी समय 'सुन्दरी तिलक' नामक सवैयो का एक छोटा सा सग्रह छपा। तब तक ऐसे ग्रन्थो का प्रचार बहुत कम था। इस ग्रन्थ का बडा प्रचार हुअा, इसके कितने ही सस्करण हुए, बिना इनकी आज्ञा के लोगो ने छापना और बेचना प्रारम्भ किया, यहाँ तक कि इनका नाम तक टाइटिल पर छोड दिया। परन्तु इसका उन्हें कुछ ध्यान न था । अब एक सस्करण खगविलास प्रेस मे हुआ है जिसमे चौदह सौ के लगभग सवैया हैं, परन्तु इन सवैयों का चुनाव भारतेन्दु जी के रुचि के अनुसार हुप्रा या नहीं यह उनकी प्रात्मा ही जानती होगी। 'प्रेमतरङ्ग' और 'गुलजार पुर बहार' के भी कई सस्करण हुए, जो एक से दूसरे नहीं मिलते, जिनमे से खगविलास प्रेस का सस्करण सब से बढ गया है। इस प्रकार कुछ काल तक चलने पर ये यथाथ मे गद्य साहित्य की ओर झुके । 'मैगजीन' के प्रकाश के अतिरिक्त पहिले नाटको ही के ओर रुचि हुई। सन् १८६८ ई० मे रत्नावली नाटिका का अनुवाद प्रारम्भ किया था, पर वह अधूरा रह गया। इससे भी पहिले 'प्रवास नाटक' लिखते थे, वह भी अधूरा ही रह गया। सब से पहिला नाटक 'विद्या सुन्दर', फिर 'वैदिको हिंसा हिसा न भवति', फिर 'धनञ्जय विजय' और फिर 'कर्पूर मजरी' । 'कर्पूर मञ्जरी की भाषा सरल भाषा की टकसाल कहने योग्य है। इसी समय 'प्रेमफुलवारी' भी बनी। इस समय वास्तव मे ये 'प्रेम फुलवारी के पथिक थे, अत इसकी कविता भी कुछ और ही हुई है। इसके पीछे 'सत्य हरिश्चन्द्र' और 'चन्द्रावली नाटिका' बनी और पूरे नाटकों