पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१२२

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पूर्वज-गण १११ पंडित जी ने मेल भी करना चाहा था। दुष्टों की दुष्टता बड़ों के मार्ग के रोड़े मात्र हैं और उससे उनको कोई भी रुकावट नही पहुँच सकती । सन् १८८० ई० से सरकार बीस रुपये और उसक बाद पैंतालीस रुपये मासिक सहायता देने लगी। म्यूनिस्पैलिटी भी दो सौ रुपये वार्षिक सहायता देने लगी। पहिले यह प्राइमरी स्कूल था फिर मिडिल स्कूल हुआ। कुछ दिन हाईस्कूल रहकर यह पुन: मिडिल स्कूल हो गया । सन् १८८५ ई० में भारतेन्दु जी का मृत्यु के अनंतर राजा शिवप्रसाद जी के प्रस्ताव तथा सभा- पति मि० एडम्स कलेक्टर साहब के अनुमोदन पर इसका नाम हरिश्चन्द्र स्कूल रखा गया। उसके अनंतर क्रमशः इसकी अवनति होती गई और यह बंद ही हो जाने को था कि सन् १६०७ ई० में काशी के कुछ सज्जनों ने जिनमें बा० गोविन्ददास जी आदि प्रमुख थे, तत्कालीन कलेक्टर मिस्टर रेडिची साहब से प्रार्थना की और उन्होंने इसका कार्यभार अपने ऊपर लिया। नगर के प्रसिद्ध पुरुषों की एक कमेटी बनाई गई। बड़े उत्साह के साथ चंदा उतारा गया, भारत-सरकार ने अच्छी सहायता दी और म्युनिस्पैलटी ने कम्पनी बारा के सामने की जगह दी, जिससे उस पर चालीस सहस्र रुपये लगाकर स्कूल की इमारत तैयार हुई। और जमीन खरीद कर उस पर विज्ञान आदि के लिए छोटी छोटी इमारतें बनवाई गई। इस प्रकार कुछ ही वर्षो में स्कूल इतनी उन्नत अवस्था को पहुँच गया कि इंट्रेन्स क्लास तक की पढ़ाई होने लगी और छः सौ से अधिक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने लगे। अब यह हरिश्चन्द्र हाई स्कूल कहलाता है । 'निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल' मंत्र को मानने वाले भारतेन्दु जी स्कूल खोलने के बाद ही से मातृभाषा की सेवा की ओर झुक पड़े। हिन्दी समाचार पत्रों की कमी देखकर कवि ,