पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१२४

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ध्यान- पूर्वज-गण ११३ इन्होंने बड़े ही धूम-धाम से ऐसा कवि-समाज किया था। जैसा न हुआ था और न आशा है कि होगा। यह कविसमाज रामकटोरा के बाग में हुआ था और कई दिनों तक चलता रहा था। इन्होंने बाग के भीतर ही रसद तथा हलवाई की दुकान लगवा दी थी और कई पेशराज जल का प्रबंध करने के लिए नियत कर दिये थे। जितने कविगण आए थे सभी की कविताएँ न-पूर्वक सुनी जाती थीं, इसलिए समय अधिक लगता था और सबको ही कविता सुनाने का अवसर देने के निश्चय के अनुसार सूचना दी जा चुकी थी इसलिए एक दिन का जलसा समाप्त होने पर प्रायः सभी कवि तथा सहृदय श्रोतागण उसी बाग में रहते और दूसरे दिन पुनः समय पर जलसा आरंभ होता जिसे जो इच्छा होती थी वह सामान लेकर भोजन बनाता या भोजन कर लेता था कुछ लोग सामान ले लेकर अपने घर जाते और दूसरे दिन समय पर घर आ जाते । इस प्रकार कई दिन के जलसे पर जब किसी कवि को कविता सुनाना बाकी न रहा तब यह कवि-समाज समाप्त हुआ था। इसी प्रकार का एक मुशायरा भी किया था जिसके प्रबंधकर्ता तेगअली थे। और बचा हुआ बहुत सा सामान वे अपने घर उठा ले गये थे। सं० १६३० वि० में पेनीरीडिंग क्लब स्थापित हुआ, जिसमें अच्छे अच्छे लेखकों के लेख पढ़े जाते थे। मैगज़ीन में प्रकाशित प्रायः सभो लेख इसमें पढ़े गये थे। गायन बादन भी इसमें मनो- रंजनार्थ रखा जाता था । भारतेन्दु जी एक बार श्रांत पथिक का स्वाँग बनाकर इसमें आए थे और गठरी पटक कर तथा पैर फैलाकर इस ढंग से बैठ गये थे कि दर्शक-गण उन्हें देख कर आनंद से लोट पोट हो गए थे। चूसा पैगम्बर का भी अच्छा स्वाँग बनाया था। नंगे शिर जरी की कफनी पहिने और आगे ८