पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१२६

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पूर्वज-गण ११५ श्री व्रजराज समाज के, तुम सुंदर सिरताज । दीजै टिकट निवाज करि, नाथ हाथ हित काज ।। भारतेन्दु जी ने स्वयं तदीय नामांकित अनन्य वीर वैष्णव, की पदवी लेते समय निम्नलिखित नियमों को आजन्म निबाहने की प्रतिज्ञा की थी। हम हरिश्चन्द्र अगरवाले श्रीगोपालचन्द्र के पुत्र काशी चौखम्भा महल्ले के निवासी तदीय समाज के सामने परम सत्य ईश्वर को मध्यस्थ मानकर तदीय निम्नांकित अनन्य वीर वैष्णव का पद स्वीकार करते हैं और नीचे लिखे हुये नियमों का जन्म मानना स्वीकार करते हैं। १-हम केवल परम प्रेममय भगवान श्रीराधिका रमण का ही भजन करेंगे। २-बड़ी से बड़ी आपत्ति में भी अन्याश्रय न करेंगे। ३-हम भगवान से किसी कामना के हेतु प्रार्थना न करेंगे और न किसी और देवता से कोई कामना चाहेंगे। ४-जुगल स्वरूप में हम भेद दृष्टि न देखेंगे। ५-वैष्णव में हम जातिबुद्धि न करेंगे। ६-वैष्णव के सब आचार्यो में से एक पर पूर्ण विश्वास रक्खेंगे परन्तु दूसरे आचार्य के मत-विषय में कभी निन्दा व खंडन न करेंगे। -किसी प्रकार की हिंसा वा मांस भक्षण कभी न करेंगे ८-किसी प्रकार की मादक वस्तु न खायेंगे न पीयेंगे। ६-श्रीमद् भगवद्गीता और श्रीभागवत को सत्यशाख- मानकर नित्य मनन-शीलन करेंगे।