पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१२७

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११६ भारतेंदु हरिश्चन्द्र १०-महाप्रसाद में अन्य बुद्धि न करेंगे। ११-हम आमरणान्त अपने प्रभु और आचार्य पर दृढ़ विश्वास रख कर शुद्ध भक्ति के फैलाने का उपाय करेंगे। १२-वैष्णव मार्ग के अविरुद्ध सब कर्म करेंगे और इस मार्ग के विरुद्ध श्रौत स्मात वा लौकिक कोई कर्म न करेंगे। १३-यथा शक्ति सत्यशौचदयादिक का सर्वदा पालन करेंगे। १४-कभी कोई बात जिससे रहस्य उद्घाटन होता हो अनधिकारी के सामने न कहेंगे । और न कभी ऐसी बात अवलम्ब करेंगे जिससे आस्तिकता की हानि हो । १५-चिन्ह की भाँति तुलसी की माला और कोई पीत वस्त्र धारण करेंगे। १६-यदि ऊपर लिखे नियमों को हम भंग करेंगे तो जो अपराध बन पड़ेगा हम समाज के सामने कहेंगे और उसकी क्षमा चाहेंगे और उसकी घृणा करेंगे । मिती भाद्रपद शुक्ल ११ संवत् १६३० साक्षी हरिश्चन्द्र पं० बेचनराम तिवारी हस्ताक्षर तदपि नामांकित अनन्य पं० ब्रह्मदत्त वीर वैष्णव चिन्तामणि यद्यपिमैंने लिख दिया है तथापि इसकी दामोदर शर्मा लाज तुम्हीं को है। शुकदेव (निज कल्पित अक्षर में) नारायण राव तदीय माणिक्यलाल जोशी शर्मा मुहर समाज