पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूर्वज-गण इस सभा समाज आदि के सिवा यह सं० १९२४ वि० में यंगमैन्स एसोसिएशन और सं० १९२५ में डिबेटिंग क्लब स्थापित कर चुके थे। द्वितीय का मुख्य उद्देश्य भाषा तथा समाज का सुधार था। इसमें सामाजिक विवाद-ग्रस्त लेख आदि पढ़े जाते थे। कुछ दिन बा० गोकुलचन्द्र इसके मंत्री थे । 'यही पहली अंग्रेजी सभा है, जिसका वार्षिक विवरण हिन्दी में लिखा गया है।' काशी 'सार्वजनिक सभा, वैश्य हितैषिणी सभा आदि भी इन्होंने आरंभ किए थे पर सभासादों के उत्साह की कमी से विशेष कार्य न कर वे बन्द हो गई। सन् १८६८ ई० में सरविलियम म्योर इस पश्चिमोत्तर प्रांत के छोटे लाट नियुक्त होकर आए । यह विद्याप्रेमी थे और इन्होंने मुसलमानों के इतिहास पर कई ग्रन्थ लिखे हैं । इनको विद्या रसिकता इनके तीन प्रसिद्ध विश्व विद्यालयों से तीन उच्चतम डिगरियाँ प्राप्त करने ही से स्पष्ट है । भारतेन्दु जी ने हिन्दी को राजभाषा बनाने के लिए इनके समय में बहुत कुछ आंदोलन किया था पर वे असफल रहे। भारतेन्दु जी तथा राजा शिवप्रसाद में हिन्दी को लेकर मनोमालिन्य हो चुका था। राजा साहब ने हाकिमों के ही शरण में रहकर खिचड़ी हिन्दी का प्रचार करना उचित समझा, जिससे वे इनके इस आंदोलन के विपक्ष में रहे। ऐजुकेशन कमीशन के समय भी इन्होंने स्वयं बहुत उद्योग किया और प्रयाग हिन्दू समाज की भी बहुत सहायता की थी पर उस समय विशेष फल न हुआ । काशीनरेश की सभा, बनारस इन्स्टीट्यूट तथा ब्रह्मामृत- वर्षिणी सभा के यह प्रधान सहायक रहे। कवि बचन सुधा में इन सभाओं के विषय की सूचनाएँ, टिप्पणो आदि निकलतो रहती थीं। इस अंतिम सभा के एक अधिवेशन में कर्नल ऐल-