पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१३०

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3 पूर्वज-गण ११६ धन्यवाद पत्र आया था। काशी की करमाइकेल लाइब्रेरी तथा बालसरस्वती भवन के स्थापन में सहस्रों पुस्तकें देकर इन्होंने सहायता की थी। बाबू सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी के नेशनलफंड में सहायता दी और उनके काशी आने पर उनका सत्कार भी किया था। सुप्रसिद्ध विद्वान पं० ईश्वरचंद विद्यासागर जब काशी पधारे थे तब वे इनसे मिलने आए थे और भारतेन्दु जी ने कुछ पुस्तकें देकर उनका आदर किया था । वे अपनी शकुन्तला की भूमिका में लिखते हैं कि 'हमको अभिज्ञानशांकुतला की आवश्यकता थी,यह बात जानते ही इस सौम्यमूर्ति, अमायिक, निरहंकार. विद्योत्साही देश- हितैषा ने जिस स्नेह और उत्साह के साथ हमारे हाथ में पुस्तक अर्पण की थी, उसे क्या हम किसी काल में भूल सकते हैं।' भाई का इनसे अलग होना 'एक ओर साहित्य सेवा में रुपये लग रहे हैं, और दूसरी ओर दीन दुखियों की सहायता में, तीसरे देशोपकारक कामों के चंदे में, चौथे प्राचीन रीति के धर्म कार्यो में, और पाँचवें यौवनावस्था के श्रानंद विहारों में ।' प्रथम चार प्रकार का व्यय किसी हालत में पाप मूलक नहीं हो सकता, हाँ, कंजूसों के विचार से वह एक दम धन फू कना या आवारगी तथा कुछ उदार पुरुषों की दृष्टि में अपव्यय तक तब कहा जायगा जब यह अपनी औकात से बहुत बढ़कर हो। पर सच्चे उदार दानी पुरुष के लिए वह किसी हालत में अपव्यय नहीं हो सकता प्रत्युत पुण्यकार्य ही माना जायगा । पाँचवें प्रकार का व्यय परोपकारार्थ नहीं है, केवल स्वार्थ के लिए है । इसमें आवश्यक अर्थात् सार्थक और अनावश्यक अर्थात् व्यर्थ ( फिजूल खर्ची) दोनों ही सम्मि- लित थे। आवश्यक व्यय मनुष्य की स्थिति के अनुकूल समझना