पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

n १२० भारतेंदु हरिश्चन्द्र चाहिए। जो धन एक धनाढ्य पुरुष के लिये ऊपरी व्यय के लिये ज़रूरी है उसमें कोड़ियों साधारण पुरुषों का कालयापन सुखपूर्वक चलता रहता है। 'शौक इन्हें संसार के सौंदर्य मात्र ही से था। गाने, बजाने, चित्रकारी, पुस्तक-संग्रह, अद्भुत पदार्थों का संग्रह, सुगंधि की वस्तुएँ, उत्तम कपड़े, उत्तम खिलौने, पुरातत्व की वस्तु, लैम्प, ऐलबम, फोटोग्राफ इत्यादि सभी प्रकार की वस्तुओं का ये आदर करते और उन्हें संगृहीत करते ।' शौक की इन चीजों में सुगंधि द्रव्य तथा उत्तम कपड़े तो व्यय हो गये होंगे पर अन्य सभी वस्तु तो घर ही में रह गई, चाहे वे बहुमूल्य रही हों या साधारण मूल्य की। अस्तु, 'इन सबों से बढ़कर द्रव्य की ओर इनकी दृष्टि न रहने के कारण अप्रबंध तथा अर्थलोलुप विश्वासघातकों के चक्र ने इनके धन को नष्ट करना प्रारंभ कर दिया। यह अवस्था तकसीमनामा होने के पहिले का थो और जब कुल स्टेट एक था। उस समय भारतेन्दु जी की विमाता तथा बा० गोपालचन्द्र जी द्वारा नियुक्त रायनृसिंह- दास से उद्भट प्रबंधकर्ता विद्यमान थे । क्या ये लोग इस अंतिम दोष कुप्रबंध के प्रधान दोषी नहीं हैं ? 'उन्होंने बा० गोकुलचन्द्र की नाबालगी तक कोठी को संभाला था। तकसीमनामे के समय बा० गोकुलचंद्र अठारह वर्षे तीन महीने के थे अर्थात् केवल तीन महीने या उससे भी कम समय तक भारतेन्दु जी प्रतिद्वंद्व रहे थे। साथ ही जो बा० गोकुलचन्द्र भारतेन्दु जी से केवल पन्द्रह महीने छोटे थे और बालिग होते ही जिनसे अपना हिस्सा अलग कर लिया था, क्या वे इस कुप्रबंध में भारतेन्दु जी के साझीदार नहीं थे ? पर सन् १८७० ई० तक के सारे कुप्रबंध के भारतेन्दु जी ही कारण माने गए । पूर्वोक्त उद्धरण में 'इनके' शब्द विशिष्ट अर्थ सूचक हैं । इसी शब्द के कारण भारतेन्दु जी को तकसीम के समय चल संपत्ति में स्यात कुछ नहीं दिया गया था।