पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२२ भारतेंदु हरिश्चन्द्र भारतेन्दु जी पर अनुज द्वारा दिये गये इस रुकावट का ऐसा असर हुआ कि वे समग्र पैतृक संपत्ति के निज भाग की दस्तबरदारी लिखने को तैयार होगए पर रायनृसिंहदास जी ने ऐसा करना अनुचित समझाका बाजाब्ता तकसीमनामा कराना उचित समझा । संपत्ति दो प्रकार की होती है-चल और अचल । चल संपत्ति के विषय में तकसीमनामा कहता है 'अशियाए मनक लः व नकदो बपास हर सेह हिस्सा तहरीर दादः अलैहदः के हम लोगों ने ब इत्तफाक यकदीगर बदस्तखत फरीकैन व वाल्दः साहबः के मुनकसिम कर लिया।' बस, इनके हिस्से में से इनका अपव्यय काट कर जो कुछ मिला होगा या इनसे उदात्त महापुरुष वे कहाँ तक अपने हिस्से के लिए छोटे भाई तथा विमाता से कहा सुनी को होगो, यह प्रत्येक पाठक समझ लें। अब अचल संपत्ति का तीन भाग किया गया। 'अवल यह कि तकसीम तीन हिस्सा करके एक हिस्सा वास्ते अमूरात दीनी व पूजः व सेवा श्री ठाकुर जी की पूजः कदीमी हम लोगों का है और इस हिस्स: ख्वाह इसके महासिल से पूजः वा सेवा श्री ठाकुर जी व पिंडसराध बुजुर्गान व आदाए. रस्म मौहिवः हरशख्स व रसूमात विरादरी.का हमेशः मुतअल्लिक रहेगा। दूसरा हिस्सा हम बाबू हरीश्चंदर व तीसरा हिस्सा हम बाबू गोकुल चंदर का करार पाया।' तकसीमनामा देखने से यह ज्ञात होता कि दोनों भाइयों को स्थावर संपति यथाशक्य सम करके दी गई है, आधे आधे इलाके या खेत पर हक दिया गया है पर तीसरे भाग में कुछ विशेषता है। इसमें इन लोगों के पूर्वजों की उत्तम से उत्तम संपति चुनकर रखी गई है। 'किता मकान सकूनत में दीवान खाना व ठाकुर द्वारा व बारा जिसकी हदूद जैल में मुदर्ज है वा बारा रामकटोरा कि इसमें भी