पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१३४

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पूर्वज-गण १२३: ठाकुर जी का मंदिल है और मौजाबरी व चैनपुर हवेली चुनार व अस्तबल बुलानालः तक़सीम वा अलैहदगी जे अख्तियार इंतकाल हम लोगों से मुस्तस्ना रखा गया और इहतमाम इसका हमेशः मुतअल्लिक़ मुन्सरिम हिस्सा अव्वल के सा अव्वल की अव्वल मुनसरिमः भारतेन्दु जी की विमाता थीं। इस प्रकार इनके पूर्वजों की सम्पति का यह भाग तथा बचे हुए का भी आधा भाग इनके हाथ से निकल कर इनके भाई साहब के हाथ में चला गया। भारतेन्दु जी के हिस्से में एक मकान, एक दूकान, कोरौना मौजा का अद्धांश, परमिट वाली कोठी, नवाबगंज बाजार का आधा स्वत्व, एक मकान मौजा मदरासी व सहारनपुर और मौजा कोरा धरौरा व देवरा का आधा हिस्सा तथा कुछ फुटकर खेत और जमीन मिली थी। इसके साथ दो शर्ते भी थीं । पहिली यह कि यदि यह अपनी स्थावर संपत्ति बेचना चाहें तो पहले अपने भाई के हाथ ही बेंच सकते हैं और उनके अस्वीकार करने पर ही दूसरे के हाथ विक्रय करने का इन्हें अधिकार होगा। दूसरे यह कि उस समय तक के लिए गए अपने ऋणों का भी प्रत्येक अलग अलग उत्तरदायी होगा। इसमें दूसरी शर्त अशर्फी तथा चार रुपये वाला ऋण भी शामिल ही रहा होगा। इस प्रकार घराऊ संपत्ति का भाग होजाने पर भारतेन्दु जी अपने ही घर में निराश्रय से रह गये। इनके यहाँ आने वाले कवि गुणी आदि इन्हीं के आश्रित थे । व्यापार या धन प्रबन्ध कुशल ये थे ही नहीं। तक़सीम के समय नगदी इन्हें विशेष मिला ही न था इसलिए ऋण लेकर काम चलने लगा और उसी से स्थावर संपत्ति का शीघ्र नाश होगया । घर के शुभचितकों ने इन्हें 'नालायक' का खिताब दे दिया और इनकी मातामही के यहाँ से