पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१३५

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१२४ भारतेंदु हरिश्चन्द्र भी इन्हें जो कुछ मिलने वाला था उसकी भी रक्षा करने का वे उपाय करने लगे। जैसा ऊपर लिखा जा चुका है.भारतेन्दु जी के मातामह प्रमातामह आदि दिल्ली के राजवंश के दीवान रह चुके थे और उन्हीं लोगों के साथ वे उनकी गिरती अवस्था में काशो आ बसे थे। इन लोगों के पास चल संपत्ति ही अधिक थी और स्थावर बहुत कम । राय खिरोधर लाले को एक कन्या और एक पुत्र था। पर पुत्र पिता के सामने ही मर चुका था। इनकी स्त्रो नन्ही बोबी ने पति, पुत्री तथा जामाता के क्रमशः मरने के अनंतर वैशाख सुदी ६ सं० १६१६ वि० को एक वसीयतनामा अपने दोनों दौहित्रों के नाम लिख दिया था। इसके तेरह वर्ष तथा तक़सीमनामा के पाँच वर्ष बाद चैत्र सुदी : सं० १६३२ को इन्हीं मातामही ने दूसरा वसीयतनामा लिखा, जिसके 'इरक़ाम' करने का कारण यों दिया है कि 'बा० हरिश्चन्द्र बड़े नवासे ने अपने छोटे भाई बा० गोकुलचंद से जायदाद मौरूसी अपने मूरिसान की तकसीम व अलैहदः कराके कुल तलफ व बर्बाद करके दर्जा आखीर को पहुँचा दिया. 'उम्मीद पाई नहीं जाती है कि बाद वफात मेरे नामोनिशान को कायम रखेगा।' सत्य ही आज इनका नाम इनकी बर्बादी के कारण ही कुछ कुछ बना है। रजिष्ट्रार के 'रिमार्क' में लिखा है कि 'मुसम्मात नन्हीं बीबी के रहने के जनाने गृह पर बा० गोकुलचन्द्र से रजिष्ट्री के लिए सुबह ६ और १० बजे के बीच यह वसीयतनामा पेश किया गया। इस पर केवल बा० गोकुलचन्द्र जी का हस्ताक्षर है । इस दूसरे वसीयतनामे के लिखे जाने पर भी वकीलों से सम्मति ली जा रही थी और अंत में यही निश्चय हुआ कि भारतेन्दु जी की मातामही को एक दौहित्र का भाग दूसरे को दे