पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१३८

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पूर्वज-गण १२७ तो भी हरिश्चन्द्र के ललित लेखों ने लोगों के जी में ऐसी जगह कर ली थी कि कवि-वचन-सुधा के हर नंबर के लिये लोगों को टकटकी लगाए रहना पड़ता था। जो लोग राजनैतिक दृष्टि से उसे अपने विरुद्ध समझते थे वह भी प्रशंसा करते थे। दुःख की बात है कि बहुत जल्द कुछ चुगुलखोर लोगों की दृष्टि उस पर पड़ी। उन्होंने कवि-वचन सुधा के कई लेखों को राजद्रोह पूरित बताया, दिल्लगी की बातों को भी वह निंदासूचक बताने लगे। मरसिया नामक एक लेख उक्त पत्र में छपा था, यार लोगों ने छोटे लाट सरविलियम म्योर को समझाया कि यह आप ही की खबर ली गई है। सरकारी सहायता बंद हो गई । शिक्षा विभाग के डाइरेक्टर केंपसन साहब ने बिगड़कर एक चिट्ठी लिखी 'हरिश्चन्द्र जी ने उत्तर देकर बहुत कुछ समझाया बुझाया। पर वहाँ यार लोगों ने जो रंग चढ़ा दिया था वह न उतरा । यहाँ तक कि बाबू हरिश्चन्द्र जी की चलाई "हरिश्चन्द्र चन्द्रिका" और "बाला बोधिनी' नामक दो मासिक पत्रिकाओं की सौ सौ कापियाँ प्रान्तीय गवर्नमेन्ट लेती थी वह भी बंद हो गई। इसके अनन्तर इन्होंने राजकर्मचारियों से बिलकुल संबंध त्याग दिया। आनरेरी मजिस्ट्रेसी आदि सब सरकारी कामों को इन्होंने छोड़ दिया और देश सेवा तथा हिन्दी की उन्नति में दत्तचित्त हो गये। इनकी रचनाओंके संक्षिप्त परिचय में राजभक्ति-विषयक शीर्षक में दिखलाया गया है कि यह किस प्रकार अपने जीवन भर आरंभ से अंत तक राजभक्त बने रहे। सन्मान भारतेन्दु जी पर भारत सर्कार की कृपा तथा कोप का उल्लेख हो चुका है। जिस समय इन्होंने आनरेरी मजिस्ट्रेसी से इस्तीफा दिया था, उस समय काशी के एक अन्य रईस बा०