पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१४

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नन्द। पूर्वज-गण हिन्दी के सुप्रसिद्ध महाकवि बाल गोपालचन्द्र उपनाम गिरधर- दाल के पुत्र आधुनिक हिन्दी के जन्मदाता, हिन्दी प्रेमियों के प्रेमाराध्य तथा पं० प्रतापनारायण जी मिश्र के कथनानुसार 'प्रातः स्मरणीय' गोलोकवासी भारतेन्दु बा० हरिश्चद्र जी ने निज उत्तरार्द्ध भक्तमाल में अपने वंश का परिचय निम्नलिखित दोहों में दिया है- वैश्य [---अग्र कुल में प्रकट, बालकृष्ण कुलपाल । ता सुत गिरधर-चरन-रत, वर गिरिधारी लाल ॥ अमींचन्द तिनके तनय, फतेचन्द ता हरषचंद जिनके भए, निज कुल-सागर-चंद ॥ श्री गिरिधर गुरु सेइ के, घर सेवा पधराइ । तारे निज कुल जीव सब, हरि-पद भक्ति दृढाइ । तिनके सुत गोपाल ससि, प्रगटित गिरिधर दास । कठिन करमगति मेटि जिन, कीनी भक्ति प्रकास ॥ मेटि देव देवी सकल, छोड़ि कठिन कुल रीति । थाप्यो गृह में प्रेम जिन प्रगटि कृष्ण-पद प्रीति ।। पारवती की कोख सों तिनसों प्रगट अमंद । गोकुल चंद्राग्रज भयो हरिचंद ॥ पूर्वोक्त उद्धरण से यह ज्ञात हो जाता है कि इनके पूर्वजों में राय बालकृष्ण तक का ही ठीक-ठीक पता चलता है। सेठ बालकृष्ण के पूर्वजों का दिल्ली के मुग़ल सम्राट्-वंश से विशेष सम्बन्ध था, पर उस शाही घराने के इतिहासों में इस वंश का भक्त-दास