पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१४१

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१३० भारतेंदु हरिश्चन्द्र स्वदेश तथा स्वभाषा प्रेम की मूर्ति थे । इन्होंने स्वयं अध्यवसाय से एक स्कूल खोल रखा था, शिक्षा कमेटी के सदस्य थे और विद्वानों से इनका बराबर समागम था । ऐसी अवस्था में इनका वक्तव्य क्यों न उत्तम होता। इसी साक्षी के ग्यारहवें प्रश्न का उत्तर देते हुए भारतेन्दुजी ने उर्द का एक शब्द (बिंदो आदि चिन्ह रहित ) लिखकर उसे दो सहस्र प्रकार से पढ़े जाने का उल्लेख किया था। यह बहुत ठीक है। उदाहरण के लिये दो अक्षर का एक शब्द ले लीजिये इसे आप कई सौ प्रकार पढ़ सकते हैं, उर्द में अ, ई और उ सा उच्चारण करने के लिये तीन चिन्ह होते हैं, ज़बर जेर और पेश खड़ी लकीर के ऊपर या नीचे बिंदियाँ देकर ब, प, तट, स और न, छ अक्षर और बिना बिंदी दिए एक अक्षर ल पढ़ सकते हैं। एक 'मर्कज' अर्थात् टेड़ी लकीर देकर क और दो देकर ग पढ़ सकते हैं । इस प्रकार नौ अक्षर हुए जिनमें प्रत्येक को तीन तीन से पढ़ सकते हैं। जैसे बिस और बुस । अब सत्ताईस उच्चारण हुए स के भी इसी प्रकार तीन तीन उच्चारण होंगे जैसे बस, बलि, बसु । इनमें सत्ताइस उच्चारण एक से होंगे इसलिए कुल के चौअन उच्चारण हुए । अब स के चिन्ह पर तीन बिंदी देने से श होगा और कुल उच्चारण एक सौ आठ हो जायँगे। दो ही अक्षर मान कर इतने हुए हैं यदि गोलाकार चिन्ह को भी एक अक्षर लेकर चलिये तो और भी बहुत से बन जायेंगे। सन् १८८३ ई० में मारिशस के गवर्नर एस० पी० हेनेसी साहब ने एक पत्र में इन्हें लिखा था कि 'लार्ड रिपन की उन्नति नीति का आप अपनी लेखनी से समर्थन करने योग्य हैं।' लंडन के सेन्ट जेम्स हॉल में इलवर्ट बिल पर एक सभा हुई थी जिसमें इतिहासवेत्ता कर्नल मैलेसन साहब ने व्याख्यान देते हुए कहा था चाल बस, शब्द