पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१४२

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पूर्वज-गण १३१ कि 'सुख्यात इतिहासवेत्ता और कवि बा० हरिश्चन्द्र इसके पक्ष में नहीं हैं और उनके दो एक पत्र मेरे पास हैं।' तात्पर्य यह कि इनके प्रभाव को दो उच्च अँग्रेज़ अफसरों ने पूर्ण रूपेण माना है । भारतेन्दु जी ने मैलेसन साहब के उक्त कथन का खडन निम्नलिखित शब्दों में किया है। हाल की एक सभा में कर्नल मैलेसन साहिब में मेरा नाम लिया है कि मैं "जुरिसडि- कशनविल" का विरोधी हूँ। कर्नल साहिब के ऐसा कहने से सम्भव है कि मेरे देशीय जन मेरे विषय में कुछ और ही अनुमान करें। यदि मैं कर्नल साहिब की बातों का खण्डन न करूँ तो देश का अशुभचिन्तक समझा जाऊँगा । यथार्थ बात यह है कि लंडन में मेरे मित्र फ्रेडरिक पिन्काट साहिब हैं। मैंने उनके पास दो तीन पत्र भेजा था, जिसमें इल्बर्ट बिल के सम्बन्ध में भी कुछ लिखा था। मेरे लेखों का सारांश यह था कि "जुरिस डिक्शन बिल" के संबंध में हिन्दू और अंग्रेज़ में बड़ा हलचल और झगड़ा उठ खड़ा हुआ है। यदि बिल पास हो तो हिन्दुओं को बहुत लाभ न होगा और जो न पास हो तो अंग्रेजों को भी बहुत लाभ न होगा। प्रत्येक अँगरेज़ तथा हिन्दू को, जो देश की भलाई को मनोकामना रखते हैं, यही चेष्टा करनी उचित है कि यह विरोध और यह जातीय झगड़ा निवृत हो जाय । अवश्य मैंने अपने पत्र में बंगालियों का नाम नहीं लिया था। मेरे लेख का सारांश यही है और आप लोग समझ सकते हैं कि कर्नल साहिब को हमारा नाम लेना उचित था वा नहीं।' हिन्दू पति महाराणा श्री सज्जन सिंह जी इन्हें बहुत मानते थे और इनका सदा सत्कार भी किया करते थे। एक बार तो उन्होंने लिखवा भेजा था कि 'बाबू हरिश्चन्द्र जी इस राज्य को अपनी सीर समझे ।' श्रीमान् काशिराज का इन पर कितना अधिक स्नेह