पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१४३

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र था इसका कई स्थानों पर उल्लेख हो चुका है। महाराज विजयनगरम् ने एक बार पाँच सहस्र मुद्रा भेट देकर तथा इनके गृह पर जाकर इनका सन्मान किया था। महाराज डुमराव श्री राधिकारमण प्रसादसिंह प्रतिवर्ष इन्हें एक सहस्र रुपये देकर सन्मानित करते थे । राजा वेंकट गिरि तथा राजा छत्रपुर इनके गृह पर जा जाकर इनसे मिला करते थे। भूपाल की नवाब शाहजहाँ बेगम भी इनसे पत्र व्यवहार रखती थीं ! उर्दू तथा फारसी में कविता करने के सिवा यह हिन्दी में भी कविता करती थीं, जिसमें अपना उपनाम 'रूपरतन' रखा था। सन् १८८२ ई० के जून में इन्होंने कुछ कविता भारतेन्दु जी के पास भेजी थी जिसे उन्होंने भारत मित्र में एक पत्र के साथ प्रकाशित करा दिया था। पत्र तथा दोनों पद नीचे दिए जाते हैं- "प्रिय सम्पादक ! भूपाल की रईस और स्वामिनी वर्तमान श्रीमती-वेगम साहिबा उर्दू भाषा की बहुत अच्छी कवि हैं। इनकी ग़ज़ल मैं "चमनिस्तानेपुर बहार" और "गुलजारपुर बहार” इत्यादि में प्रकाशित कर चुका हूँ। संप्रति उनके बनाए भाषा में कई एक भजन मेरे पास आए हैं। मैं उनमें से दो आप के प्रकाश करने को भेजता हूँ। इसको देख कर क्या साधारण आर्य धर्माभिमानी ललनागण लज्जित न होंगी कि एक मुसल्मान और अत्यंत राजभार व्यग्र स्त्री ने ऐसी सुन्दर कविता की है। क्या वह भी दिन देखने में आवेगा कि हमारी गृहलक्ष्मीगण भी कुछ बनावेगी ? इनका काव्य में 'रूप रतन' नाम है। नाम भी बड़े ठाट बाट का रक्खा है।" मलार-कैसी बदरिया कारी छाई, पिय बिन बरखा ऋतु आई। झींगुर मोर चिघार पुकारे, कल न परे मोहि विरह के मारे, पापी पपीहा ने आन जगाई। हमरे पिया परदेश बिलमि रहे, इत बदरा दिन रैन