पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१५२

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१४२ भारतेंदु हरिश्चन्द्र इनके इस दशा में पड़ने से और स्वस्थ चित्त न रहने से देश की बड़ी हानि हुई। वह सुमधुर शारदा की वीणा की कोमल झंकार अब तादृश कणं गोचर नहीं होती और वह उत्तमोत्तम लेखक अब कवि वचनसुधा को अपने सुधा-प्रवाह से नहीं प्लावित करते । कारण यह कि एक स्वभाव इनका हमने स्वयं अनुभव किया कि इनका बल हनुमान जी का बल है, कोई उसका परिचालक हो तो चलता है। तो ये तो चिन्ताग्रस्त हुए अब वे बातें कहाँ! अब इस अवस्था पर मेरी प्रार्थना और अभिलाषा है कि इनके योग्य अनुज तथा उस थोड़े से ऋण का जो शेष रहा है शोधन करने में असमर्थ हैं। ... क्या उनके कुटुम्ब द्रव्य से उतना दे दिया जायगा तो वह कुछ न्यून होगा। क्योंकि 'विक्रीते करिणि किमंकुशे विवादः' जब कई लक्ष रुपया दे दिया गया तो इस थोड़े से के वास्ते ऐसे सहृदय और सजनता की मूर्ति को कष्ट क्यों हो। यों हमारे भारतवर्ष में विद्यानुरागी अनेक महा- राजे हैं कोई उनको बुला ले और उनकी बुद्धि की सहायता से अपना लाभ उठाये। यही नहीं किन्तु देश का भी उपकार करे। हम नहीं जानते कि वे यह स्वीकार करेंगे कि नहीं। किन्तु यह हम कह सकते हैं कि यदि ऐसा योग हो तो हम लोग इनको उसके स्वीकार करने में बाधित करेंगे। तथा श्रीमान् महाराजा काशीनरेश अपने दरबार में ऐसा सुयोग्य पुरुष नहीं चाहते। आप ही के पत्र में उन्होंने प्रकाशित किया था कि श्रीमान् हिन्दू- पति श्री महाराणा साहिब ने उनकी एक बार सहायता की थी तो क्यों नहीं एक बार पुनः उदयपुराधीश सहायता करके बखेड़ा दूर कर उनको अपने निकट बुला लेते। जहाँ तक हम जानते हैं आजकल वह अत्यंत असुबिधा में हैं। इससे मेरी लोगों से यही प्रार्थना है कि इसके पूर्व में कि यह अमृतमय तरु कलियुग का