पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१५९

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संतति तथा स्त्री १४६ बया- इनमें अंतिम दो मातृ-भाषा की कुछ सेवा करते रहते हैं। सं० १६५७ वि० के अगहन कृष्ण २ को श्रीमती विद्यावती का और सं० १६८६ के चैत्र कृष्ण २ को पूज्यपाद बा० बलदेवदास जी का स्वर्गवास हो गया। भारतेन्दु जी के छोटे भाई बा० गोकुलचंद्र जी को दो पुत्र और दो पुत्री थीं। पुत्रों का नाम बा० कृष्णचन्द्र तथा ब्रजचन्द्र था । प्रथम के तीन तथा द्वितीय के दो पुत्र वर्तमान हैं। ये सभी अभी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बा० कृष्णचंद्र के पुत्रों का नाम बा० मोतीचंद, बा० लक्ष्मीचंद तथा बा० नारायणचंद्र है और बा० ब्रजचंद्र के पुत्रों का नाम बा० कुमुदचंद्र और बा० मोहनचंद्र हैं। भारतेन्दुजी की धर्मपत्नी श्रीमती मन्नोदेवी का आषाढ़ कृष्ण ७ सं० १९८३ वि० (सन् १९२६ ई.) को, लीस वर्ष तक वैधव्य भोगकर गंगा-लाभ हुआ था । इनका अपने भ्रातृ-पुत्रों पर बहुत ही स्नेह था । स्वर्गीय बाबू कृष्ण- चन्द्र जी नित्य ही अर्द्धरात्रि के बाद एक दो बजे बारा से घर लौटते थे और यह बराबर उनके आसरे बैठी रहती थीं तथा उन्हें भोजन कराकर तब सोती थीं। वे दोनों भाई भी इन्हें बहुत मानते थे और उन लोगों ने अंत तक उसी प्रकार निबाहा भो था। इस लंबे वैधव्य के कारण इन्हें कष्ट भो बहुत उठाना पड़ा। कई वर्ष तक आँखों से न दिखलाई पड़ने के कारण तथा रोग जर्जरित होने से घरवालों को भी तकलीफ थी। कुछ लोगों के इस कथन पर कि 'अमुक तो अपना सर्वस्व फूंक कर चल दिए और इन्हें हम लोगों के जान का ग्राहक छोड़ गए' इन्हें मानसिक कष्ट विशेष हुआ था तथा इन्होंने एक बार कहा भी था कि "अब हम अधिक न चलेंगे, हमारी क्रिया के लिए विशेष समारोह