पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१६

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पूर्वज-गण जिससे इनके तीन पुत्रों को राजा और एक को रायबहादुर की पदवी प्राप्त हुई थी। सेठ अमीनचंद इतिहास-प्रसिद्ध पुरुष हो गए हैं और इनके पिता तथा दादा का कुछ भी वृत्तान्त नहीं मिलता, इसलिए उन्हीं का परिचय पहले दिया जाता है। मुग़ल-साम्राज्य का अवनति-काल औरंगजेब की मृत्यु से प्रारंभ होता है और इसी काल में इस जर्जरित साम्राज्य की सीमा पर के प्रान्तों के अध्यक्षगण धीरे धीरे स्वतंत्र सेट अमीनचद होने लगे थे। औरंगजेब के पौत्र अज़ीमुश्शान तथा प्रपौत्र फर्रुख सियर की सूबेदारी के समय में मुर्शिद कुली खाँ बंगाल का दीवान था, जो फर्रुख सियर के सम्राट होने पर बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा का सूबेदार नियुक्त किया गया था। इसकी मृत्यु पर इसका दामाद शुजाउलमुल्क तथा उसके अनंतर उसका पुत्र सर्फराज खाँ क्रमश: प्रांताध्यक्ष (सूबेदार) नियत हुये। सन् १७४० ई० में अलीवर्दी खाँ ने सर्फराज खाँ को युद्ध में मार कर बंगाल पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार देखा जाता है कि ये लोग नाम-मात्र के मुग़ल- सम्राट के अधीनस्थ कहलाते थे पर वास्तव में स्वतंत्र थे अलीवर्दी के पुत्र न थे, पर तीन कन्यायें थीं, जो इसके बड़े भाई हाजी मुहम्मद के तीन पुत्रों को ब्याही गई थीं। इन सभी था। ज्ञात होता है कि नवाब दरबार से अधिक सम्बन्ध होने के कारण फ़ारसी शब्द 'अमीन', जो सेठों के लिए बहुत उपयुक्त है, नाम में लाया गया है और उच्चारण अमी सा करने तथा लिखते लिखते चंद्रबिंदु के लुप्त हो जाने से अमीचंद रह गया है। फारसी में चन्द्रविंदु के न होने से पूरे वर्ण 'D' का प्रयोग होता है। निखिलनाथ राय की 'मुर्शीदाबाद काहिनी,' पुस्तक के ६७ पृ० पर भी अमीनचंद हो दिया है। ।