पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१६३

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चन्द्र में कलंक १५३ जो उदासीनता है उसी से वह चिंतित रहती हैं । चौधरी महाशय ने भारतेन्दु जी से सन्मुख बात करना उचित न समझ कर उन्हें इस विषय पर एक पत्र लिखा था जिसका लंबा उत्तर भारतेन्दु जी ने बंगला भाषा में ( पर हिन्दी लिपि में ) लिखकर भेजा था। उस समय पत्र का आशय यही था कि वे अपनी स्त्री को किसी प्रकार का किंचित भी . कष्ट नहीं देते और वह घर पर सब प्रकार से आराम से रहती हैं पर वे स्वयं अपने मन के अधिकारी नहीं हैं, उनका मन घर पर नहीं लगता, इसलिए वह लाचार हैं। यह पत्र अभी तक कुछ दिन हुए उनके पास था और उन्होंने उसे अपने सुशिक्षित पुत्र को उसे सुरक्षित रखने को दे दिया था पर इन महाशय ने उसे तुच्छ समझ कर नष्ट हो जाने दिया। ऐसा समझने का कारण स्यात् यही था कि भारतेन्दु जी बंगाली नहीं थे। अस्तु, अब माधवी तथा मल्लिका का कुछ परिचय यहाँ दे दिया जाता है। जगतगंज निवासी किशुनसिंह की लड़की का नाम माधवी था जिसका दूसरा नाम ( उर्फ) अलीजान था। इसने अपना एक मकान, जो बाग सुन्दरदास नामक मुहल्ले में था, आषाढ़ सं० १९३६ (जून १८७६) में बेचा था । उस बैनामे में बेचने का कारण यह लिखा है कि 'यह मकान बा० गोकुलचन्द के यहाँ पाँच सौ रुपये पर रेहन था और उसी ऋण को चुकाने के लिये इसे निकाल देना आवश्यक हुआ ।' पूर्वोक्त बैनामे की इन बातों से यह स्पष्ट ज्ञात होजाता है कि माधवी हिन्दू थी पर मुसलमान हो गई थी। ऐसी ही अवस्था में वह ऋण लेने देने के लिये भारतेन्दु जी के गृह पर उनके भाई के पास आती थी और इस प्रकार इनसे उसका परिचय होगया होगा। माधवी के हिन्दू से मुसलमान हो जाने के कारण उसमें कुछ विशेषता आगई थी और अंत में