पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१६४

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१५४ भारतेंदु हरिश्चन्द्र भारतेन्दु जी ने उसकी शुद्धि करके उसे ग्रहण कर लिया होगा। जो ऋण के लिये यह मकान सन् १८७६ में बिका था वह अवश्य पाँच सात वर्ष पहिले का अर्थात् सन् १८७२ ई० के लगभग का रहा होगा। उस समय भारतेन्दु जी की अवस्था तेईस चौबीस वर्ष की थी और वे 'घर के शुभचिंतकों, के कारण घर के लिये त्याज्य से हो रहे थे। ऐसी अवस्था तथा दशा में इस प्रकार के प्रणय हृदय की सांत्वना के लिए अनायास हो जाते हैं। भारतेन्दु जी ने इसके लिये सुडिया महल्ले में एक मकान क्रय कर दिया था और उसमें एक ठाकुर जी भी स्थापित किये गए थे तथा कुछ उत्सव मनाये जाते थे। यहाँ वे प्रायः रात्रि व्यतीत करते थे। चित्त बिनोदार्थ क्रय की गई वस्तुओं का भी यहाँ अच्छा संग्रह होगया था, जिसमें हाथी दाँत पर बने हुए चित्रों का एक ऐलबम भी था। भारतेन्दु जी की मृत्यु पर यह सब सामान बा० गोकुल- चंद जी घर लिवा लाए और माधवी के व्यय के लिये दस रुपये मासिक नियत कर दिये थे। यह भी उनकी मृत्यु के बाद बंद होगया, जिससे वह मकान बेचकर अन्यत्र चली गई। मल्लिका नाम की एक बंगदेशीया कुलीन विधबा स्त्री खदेरू- मल की गली में आकर बस गई थी या किसी ने जान बूझ कर उसे वहीं लाकर बसाया था, इसका ठीक पता नहीं। आजकल यह गली टकसाली की गली भी कहलाती है। घराने के चौखंभा स्थित दीबानखाने वाले मकान के पास पश्चिम ओर सटा हुआ जो इसी वश का दूसरा मकान है, उसके ठीक पीछे यह गली है। ये दोनों मकान ऊपर हर मंजिल में मिले हुए हैं, केवल सबके नीचे वाली मंजिल अलग है जिसमें से एक गली गई हुई है। खदेरूमल की गली इतनी सकरी है कि उसके दोनों ओर के मकान ऊपर से एक से मालूम होते हैं और लड़के तक एक पर से दूसरे