पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मित्रगण हाथ के अच्छे कारीगर थे। इनके हाथ का बनाया एक फौवारा दस सहस्र को बिका था। यह भी अपने मित्र के समान उदार थे और इसलिए ऋणग्रस्त भी थे । वॉड्स स्कूल के इनके दो एक मित्रों का वहाँ उल्लेख कर दिया जाता है। बस्ती के राजा महेश्वर सिंह भी इनके मित्र थे और वे भी कुछ कविता विशेषत: ठुमरियाँ बना लिया करते थे। सरयूपार की यात्रा के विवरण में भारतेन्दु जी ने इनके स्थान का भी उल्लेख किया है। जब इनकी अवस्था अधिक हो गई थी, उसे धोखे से एक खून कर डालने के कारण इन्हें एक घंटे की सजा मिली थी और उतने समय के लिये इन्हें जेलखाने की हवा खिलाई गई थी। यह इस दंड से दुखित हुए थे और यह पद जोड़ा था- हे राम राजा रजाय भई तुम्हरी। रजाय भई तुम्हरी सजाय भई हमरी ॥ कहत, महेस, बस्ती के राजा बूढी उमरि में सजाय भई हमरी ॥ जबलपुर जिलांतर्गत गढ़ा परगने के ताल्लुक़दार राजा अमानसिंह गोटिया भी कोटे ऑव वॉ की ओर से काशी ही में पढ़ने आये थे और यहीं छः वर्षे तक विद्याध्ययन कर सन् १८८० ई० में अपने राज्य को लौट गये थे। अपनी एक रचना 'मदन मंजरी नाटक' को भूमिका में वह लिखते हैं कि “श्रीयुत बा० हरिश्चन्द्र भारतेन्दु की बनाई हुई बहुत सी पुस्तकें देखी तो मन से उत्पन्न हुआ कि मैं भी बाबू साहब की सहायता से इस पुस्तक को प्रचलित करूँ। इस नाटक के बनाने में हमारे बा० हरिश्चन्द्र ने बड़ा ही श्रम किया कि इसको शुद्ध करके प्रचलित करा दिया, उनको नमस्कार है।” तात्पर्य यह है कि अपने मित्र भारतेन्दु जी की नाटक रचनाओं को देखकर इन्होंने भी इस