पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१७

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र कन्यायों के संतानें थी पर इनमें सबसे छोटी पुत्री को जैनुल- आबदीन से जो एक पुत्र था उस पर अलीवर्दी खाँ की अत्यधिक ममता थी। सन् १७५६ ई० में यही बालक सिराजुद्दौला की पदवी से बंगाल का नवाब हुआ। सन् १६४४ ई० में मुग़ल सम्राट शाहजहाँ की बड़ी पुत्री जहाँआरा बेगम के सुवासित वस्त्रों में किसी प्रकार आग लग गई और बुझाए जाने तक में वह अत्यंत जल गई। देशी हकीमों से विशेष लाभ न होने पर सूरत से ग्रेबील बाउटन नामक एक डाक्टर बुलाया गया, जिसने शीघ्र ही उसे आरोग्य कर दिया। पुरस्कार पूछने पर उस निस्वार्थ देश-प्रेमी ने यही माँगा कि उसके देशवालों को बंगाल में बिना कर दिए व्यापार करने तथा कोठी बनाने की आज्ञा दी जाय । अपने इच्छानुकूल फर्मान लेकर वह राजमहल पहुँचा जहाँ बंगाल के प्रांताध्यक्ष और शाहजहाँ के द्वितीय पुत्र सुलतान शुजाअ का दरबार लगता था। यहाँ भी इसने शुजाअ के जनाना महल के एक असाध्य रोगी को अच्छा कर दिया, जिससे शाहजादा भी बहुत प्रसन्न हुआ और उसकी रक्षा में हुगली में कोठियाँ खुल गई। इसकी शाखाएँ भी पटना, कासिमबाजार, ढाका और बालासोर में स्थापित हो गईं । सन् १६८६ ई० तक इन लोगों को किसी प्रकार का कष्ट नहीं उठाना पड़ा पर उसी वर्ष बंगाल के नए प्रांताध्यक्ष नवाब शायस्ता खाँ के क्रोध में पड़ कर जॉब चार्टीक को अपने साथियों के साथ मंदराज चले जाना पड़ा। इसके दूसरे ही वर्ष अंग्रेज वणिक फिर से बुलाए गए, जिन्होंने कलकत्ते के उत्तर सूतालूटी में कोठी स्थापित की । सन् १६६५ ई० में वर्धमान के एक जमीदार शोभा सिंह के बलवा करने. पर इनको अपनी रक्षा के लिए दीवाल बनाने की आज्ञा मिल गई। सोलह सहस्त्र रुपये भेंट देकर नए