पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१७४

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१६४ भारतेंदु हरिश्चन्द्र मैगज़ीन में पहिली बार छपा था पर उसको भारतेन्दुजी ने पसन्द नहीं किया, तब उसी सतीत्व-महात्म्य पर सती प्रताप, नाटक लिखने लगे थे। इनकी प्रथम रचना एक और थी, जो प्रह्लाद महानाटक नाम से बेंकटेश्वर प्रेस द्वारा प्रकाशित हुई था। यह नाटकं ऐसा बना था कि वे स्वयं उसे अपनी रचना कहने में संकोच करते थे। यह भारतेन्दु जी ही के समान शीलवान थे पर व्यवहार दक्ष होने से इनकी रचनाओं में भी उसकी पूरी छाप है। भाषा बहुत संयत और बोल-चाल की है। हिन्दी-हित साधन में अलीगड़ निवासी बा० तोताराम ने भी भारतेन्दु जी का साथ दिया था। ये कायस्थ थे और इन्होंने बी० ए० तक पढ़कर कॉलेज छोड़ दिया था । पहिले यह फतहगढ़ स्कूल के हेडमास्टर हुए और फिर काशी चले आए। यहाँ भारतेन्दु जी के सत्संग के कारण इनका हिन्दी प्रेम बहुत बढ़ा। सन् १७७४ ई० में इनका पहिला नाटक 'कीर्ति-केतु' हरिश्चन्द्र मैगजीन में क्रमशः प्रकाशित हुआ था। इसके अतिरिक्त केटो वृत्तांत, स्त्री सुबोधिनी, ब्रजयात्रा आदि पुस्तकें लि« । अलीगढ़ में एक भाषा संवर्धिनी सभा तथा लायल लाइब्रेरी स्थापित करने में प्रधान रहे। 'भारतबंधु' नामक एक साप्ताहिक पत्र भी यह निकालते थे। माधव संप्रदाय के गोस्वामी पं० राधाचरण जी में हरिश्चन्द्र चन्द्रिका के लेख पढ़ कर मातृभाषा तथा देश के प्रति अनुराग और समाज सुधार का भाव पैदा हुआ था। यह पहिली बार जब अपने पिता के साथ काशी आए थे, जो पुराने विचारों के अनुगामी थे, उस समय इनका समाज सुधार की ओर विशेष झुकाव हो रहा था और भारतेन्दु जी भी उस समय तक अंध विश्वासियों द्वारा नास्तिक कहे जाने लगे थे। गोस्वामी जी की