पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मित्रगण १६७ चित्र दिया भी गया है। लाहौर से गोस्वामी श्री ज्वालादत्त प्रसाद ने बा० हरिश्चन्द्र के उपनाम पर एक पत्र 'भारतेन्दु' सं० १९३८ वि० में निकाला था पर वह शीघ्र ही बन्द हो गया था। उसी पत्र को गोस्वामी श्री राधाचरण जी ने बाद को वृन्दावन से प्रकाशित करना आरभ्भ किया था। इन्होंने बहुत सी पुस्तकें और लेख लिखे हैं। पं० मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या शिक्षा पाने के लिए काशी आए थे। इनके पिता भारतेन्दु जी की कोठी में आया जाया करते थे और उनके साथ यह भी कभी कभी आते थे। समवयस्क होने से कुछ ही दिनों में आपस में मित्रता हो गई और यह बराबर उनके यहाँ रहने लगे। पंड्या जी कहते थे कि हिन्दी भाषा के विद्वान तथा रामायणी पं० बेचनराम जी प्रायः भारतेन्दु जी के यहाँ आते थे और हम लोगों को हिन्दी भाषा के तत्व बतलाते थे अपने पिता की मृत्यु पर ये काशी छोड़ कर पहिले बड़ौदा कमी- शन में क्लर्क होकर गए और फिर उदयपुर में नौकर हुए। इसके अनंतर कृष्णगढ़ में दीवान भी हुए थे। इन्होंने अपने नाम पर 'मोहन चन्द्रिका' नामक पत्र निकालना चाहा और इसके विषय में भारतेन्दु जी को लिखा । भारतेन्दु जी ने अपनी पत्रिका उन्हें सौंप दी जिससे हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' पीछे से कुछ दिनों तक मोहन चन्द्रिका में सम्मिलित होकर निकलती थी। इन्होंने पृथ्वी- राजरासो के दो समय का संपादन किया था तथा उसको असल सिद्ध करने के लिये रासो संरक्षा' हिन्दी और अंग्रेजी में लिखा था । यह हिन्दी तथा उर्दू दोनों ही में कुछ कविता भी करते थे। पं० दामोदर शास्त्री पूना से काशी आए और यहीं इनके पिता, माता, स्त्री तथा पुत्र सभी का कैलाशवास हो गया। यह जीविका रहित हो रहे थे कि “उसी समय श्री हरिदया से एक