पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१८१

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मित्रगण १७१ इन्हें क्वीन्स कॉलेज के प्रधानाध्यापक श्रीयुत प्रमदादास मित्र से कहकर स्टेशन तक साथ चलने के लिए वहाँ से लिवा गए । वहाँ पहुँचने पर उन्हें भी कलकत्ते साथ चलने को बाध्य किया । वहाँ इन दोनों सज्जनों के पास जो कुछ नगद था वह व्यय हो गया। दत्तजी के कलकत्ते में बहुतेरे शिष्य थे और उन लोगों से जो कुछ उन्हें प्राप्त हुआ था वह भी भारतेन्दु जी ने लेकर व्यय कर डाला। पंडित जी कलकत्ते ही में भारतेन्दु जी के लिए जौहरी के यहाँ ठहर गए और जो कुछ वस्त्रादि उन्हें दान में मिले थे, उसे उन्होंने भारतेन्दु जी को अपने घर पर भेजवा देने के लिये दे दिया था पर यह सब भी मार्ग ही में वितरित हो गया । जब पं० रामेश्वर दत्त जी कलकत्ते से लौटे तब बाबू साहब उनको लेने के लिए स्टेशन गए और उन्हें अपने यहाँ लिवा लाए । वे जो कुछ और वहाँ से लाए थे, वह भी यहाँ बँट गया और इस प्रकार इनके ढाई तीन सौ रुपये के सामान इन्होंने व्यय कर डाले । प्रायः एक वर्ष बाद इन पंडित जी के सामने ही कहीं से कई सहस्र रुपये आए थे, जिसमें से दो सहस्र के नोट बाबू साहिब ने चुपके से इनके खलीते में रख दिये । जब इन्होंने घर पर जाकर उन्हें देखा तब बाबू साहिब के पास आकर उन नोटों के विषय में पूछने लगे। भारतेन्दु जी ने उत्तर दिया कि कलकत्ते की यात्रा का जो कुछ बाकी था, वही यह है। भारतेन्दु जी के पिता के सभासद तथा भारतेन्दु जी के शिक्षक पं० ईश्वरीप्रसाद जी तिवाड़ी के पुत्र पं० शीतलाप्रसाद जी त्रिपाठी प्रसिद्ध पंडित तथा संस्कृत कालेज में साहित्य के प्रधान अध्यापक थे। इन्होंने जानकी-मंगल नाटक बनाया था । सावित्री चरित्र नामक एक पुस्तक भी गद्य-पद्यमय लिखी है। .