पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१८४

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मित्रगण १७५ भेजते थे और उन्हें पढ़कर उधरवाले कितने सज्जन हिन्दी- प्रेमी हो गए। मुशी ज्वालाप्रसाद बकील भी इनके घनिष्ठ मित्रों में से थे। इनके पितामह कुंजबिहारी लाल आरे से काशी आकर बस गए। इनके पुत्र लाला मानराय थे। इन्होंने अपने परिश्रम से कुछ पढ़कर फौजदारी में मुख्तारी करना शुरू किया और बा० हर्षचन्द्र के यहाँ नौकरी भी कर ली। बाद को इन्होंने वकालत पास किया और मुसिफ़ होगए । सन् १८५३ ई० में सदर गए । थोड़े दिन बाद सरकारी वकील हो कर यहाँ लौटे और बहुत धन उपार्जन कर मकान तथा गाँव खरीदा। यह बड़े उदार थे। सन् १८७१ ई० में इनकी मृत्यु हुई। इन के पुत्र लाला ज्वालाप्रसाद भी प्रसिद्ध वकील थे। भारतेन्दु जी कभी कभी इनके यहाँ सुबह जाया करते थे और प्रायः दिन भर व्यतीत कर शाम को घर लौटते थे। लाला साहब यद्यपि नामी वकील थे और मुवक्किल उन्हें घेरे रहते थे पर इनके पहुंचने पर वे सब काम छोड़कर इन्हीं से बातचीत करने में लग जाते थे। यहाँ तक कि वे कचहरी भी न जाते थे। इन्हीं मुशी जी ने स्यात् "कलिराज की सभा' लिखी थी। इनके अग्रवाल मित्रों में बा० बालेश्वर प्रसाद बी० ए०, बा० जगन्नाथ दास जी 'रत्नाकर' बी० ए० के पिता बा० पुरुषोत्तमदास, बा० केशोराम, बा० माधोदास जी आदि प्रधान थे । इन मित्रों की गोष्ठी प्रायः बा० बालेश्वर प्रसाद के निवास स्थान नार्मल स्कूल में या बा० केशोराम के दुर्गाकुड-स्थित बाग़ में हुआ करती थी। ये लोग प्रायः समवयस्क थे और इस प्रकार की बैठकों में इन लोगों में आपस में खूब हँसी-मजाक होता था। बा. बालेश्वर प्रसाद पहिले नार्मल स्कूल के हेडमास्टर थे।