पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१८५

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१७६ भारतेंदु हरिश्चन्द्र बाद को डिप्टी कलक्टर और फिर काशीनरेश के दीवान नियुक्त हुए । यहाँ से प्रयाग के बोर्ड आँव रेवेन्यु के सिक्रेटरी नियुक्त हुए, जो पद उस समय तक अंग्रेजों ही के लिये नियत था। इन्हों ने 'काशीपत्रिका' नामक समाचार पत्र भी निकाला था, जो शिक्षा विभाग द्वारा स्वीकृत हुआ था। इन्होंने 'वेनिस का सौदागर' नाम से शेक्सपिअर के मर्चेट ऑव वेनिस' का अनुवाद कर अपनी पत्रिका में छापा था। इन्हीं के कहने पर भारतेन्दु जी ने 'सत्यहरिश्चन्द्र' नाटक की रचना की थी। बा० बुरुषोत्तमदास जी के विषय में उनके पुत्र 'रत्नाकर' जी का उल्लेख कर देना ही जिस प्रकार अलं है उसी प्रकार बा० माधोदास जी के संबंध में इतना ही लिख देना बहुत है कि उन्हीं के सुपुत्रगण बा० गोविंद- दासजी, डा० भगवानदास जी एम०, ए० डी० लिट्, बा० राधेचरण जी और बा० सीताराम जी हैं। बा० केशोराम जी शिवाले महल्ला के रईस थे और भारतेन्दु जी से इनकी कितनी घनिष्ठ मित्रता थी, इसके उदाहरण-स्वरूप इनके पास एक एलबम है जिसमें भारतेन्दु जी की विभिन्न अवस्थाओं तथा अनेक प्रकार के वस्त्र आदि से विभूषित प्रायः पैंतीस फोटोग्राफ़ हैं । इनके चित्रों का ऐसा सुन्दर संग्रह और कहीं नहीं है । बा० केशोराम के पौत्र बा० राधाकृष्णदास जी बी० ए० की कृपा ही से वे चित्र आज पाठकों को देखने के लिये मिले हैं। सब के अंत में बा० राधाकृष्ण दास जी का परिचय दिया जाता है, जो भारतेन्तु जी के फुफेरे भाई और सदा साथ रहने- वालों में से थे। एक बार भारतेन्दु जी के पिता बा० गोपालचन्द्र जी को इनके पिता बा० कल्याण दास ने गंगा जी में एकाएक डूबने से बचाया था, जिससे दोनों में गहरी मित्रता होगई थी। इसी स्नेह के कारण इनके साथ उक्त बा० साहब ने अपनी बहिन