पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१९०

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दान की स्फुट वार्ता १८१ उनसे कुछ थे जिसे वे ले आए । उतने ही बीच में साढ़े तीन सहस्र स्वाहा हो चुका था। 'बा० हरिश्चन्द्र के प्रयत्न से फ्रांस की दुखियाओं के हेतु एक चंदा हुआ है, निश्चय है कि हमारे ग्राहक लोग भी यथाशक्ति इच्छानुसार इस चन्दे में सहायता करेंगे। यह चन्दा प्रोफेसर गार्सा द तासी द्वारा फ्रांस भेजा जायगा ।' यह सूचना तत्कालीन एक पत्रिका से यहाँ उद्धृत की गई है जिससे यह ज्ञात होता है कि भारतेन्दु जी अन्य देश के निवासियों के कष्ट-निवारण का भी प्रयत्न करते रहते थे। वा० रामकृष्ण वर्मा कहा करते थे कि एक बार एक सज्जन भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र जी के यहाँ आए और अपने को कवि बतलाते आर्थिक सहायता चाही । यह कहने पर कि अपनी कुछ कविता सुनाइए, आप ने निम्नलिखित तीन पंक्तियाँ कह डाली:- १-कोऊ एक पापी हर नाम न जापी, सो मग्गह में मर गयो । २-गंगा जी की बालू बरबस उड़ी बयार ताके कोटानि काट पाप तरि गयो। ३- मुख सुन्दरी खिलावे पान गुण के निधान सो विमान चले जाते हैं। भारतेन्दु जी यह सुन कर बड़े प्रसन्न हुए और उस अर्थी को सौ रुपए पुरस्कार देकर बिदा किया। एक बार कहीं मजलिस में भारतेन्दु जी बैठे हुए थे और शीतला के दागों से युक्त कोई वेश्या गान कर रही थी। किसी उपस्थित सज्जन ने भारतेन्दु जी से वेश्या को लक्ष्य करके कहा कि 'हुजूर इस चेचक-रू पर कुछ कविता बनाएँ तो अत्युत्तम हो । भारतेन्दु जी ने कहा कि 'भाई, अभी तो एक शेर बन गया है, उसे