पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१९६

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दान की स्फुट वार्ता १८७. रावण के मर जाने पर लंका में 'पुलकित तन गदगद गिरा विनय करत त्रिपुरारि ।।' कैसे कहा गया है ? पाठक जी इन तीनों शंकाओं का कुछ भी समाधान नहीं कर सके तब अंत में भारतेन्दु जी ने इन सबका समाधान किया। पर जिन सज्जनों ने यह वार्ता मुझे बतलाई उनमें से कोई भी इन समाधानों को न जानता था जिससे वे यहाँ नहीं लिखे जा सके। पं० प्रयागदत्त जी भारतेन्दु जी के मुख्य दरबारियों में से थे। इनकी दो शादियाँ हो चुकी थीं और अवस्था भी अधिक थी पर एक भी सन्तान नहीं हुई थी। इससे वे बड़े दुखी रहते थे। एक दिन भारतेन्दु जी ने इनसे कहा कि मेरी अन्तरात्मा कहती है यदि आप तीसरा विवाह करें तो अवश्य आप को पुत्र होंगे। इसके अनन्तर उन्हें दो सौ रुपये विवाह करने के लिये दिए। अंत में किसी प्रकार उमका विवाह हो गया और सन् १९२८ में इन्हें एक पुत्र हुआ। इस पर भारतेन्दु जी ने बड़ी प्रसन्नता मनाई और लोगों के पूछने पर कहा कि 'ब्राह्मण का आशीर्वाद हम को फलना चाहिए, सो न होकर हमारा आशीर्वाद नेक ब्राह्मण को फला, इससे बढ़ कर खुशी का दिन और कौन होगा ?' इसके बाद इन पंडित जी को एक पुत्र और हुआ। ये दोनों ही पुत्र उसी कोठी के बहुत दिनों तक आश्रित रहे । बड़े पुत्र का नाम गणेशदत्त था और यह लड़कपन में बंदन पाठक जी की रामायण की कथा की नकल उतारते थे एक बार यह भारतेन्दु जी के सामने रामायण गा रहे थे कि वह सोने का पान का खाली डिब्बा हाथ में उठा कर झांझ की तरह बजाने लगे। लड़के ने वह माँझ बजाने को माँगा और पिता के मना करने पर भी हठ करने लगा तब भारतेन्दु जी ने उसे वह