पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१९९

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१६० भारतेंदु हरिश्चन्द्र इस कागज के पीछे उर्दू में लिखा है कि 'मार्फत माधो सिंह हरकारा सरकार मुबलिग़ पचीस रुपया पहुँचा. ६ सितंबर सन् १८८० ई० ।' हो सकता है कि भारतेन्दु जी ने किसी को सहायतार्थ ये रुपये महाराज काशिराज को लिख कर दिलवाए हों और उसमें अपने द्रव्याभाव का उल्लेख किया हो, जिस पर महाराज ने ये दोहे लिखवा कर रुपयों के साथ भेजे हों। रचनाएँ नाटक हिन्दी-नाट्य साहित्य का एक प्रकार अभाव देखकर ही भारतेन्दु जी ने इस ओर विशेष ध्यान दिया था और प्रायः इनकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ इनके नाटक ही हैं। हिन्दी में इनके समय तक देवकृत देवमाया प्रपंच, नेवाज का शकुंतला-नाटक, हृदयराम का हनुमन्नाटक, ब्रजबासी दास कृत प्रबोध चन्द्रोदय नाटक आदि लिखे जा चुके थे पर उनका नाममात्र ही नाटक था और वे नाटक की कोटि में नहीं परिगणित हो सकते थे। प्रभावती, प्रद्युम्न-विजय और आनंदरघुनन्दन किसी प्रकार नाटक कहें भी जा सकते हैं। भारतेन्दु जी के पिता का नहुष नाटक नाट्य शास्त्रानुकूल होते हुए भी बिलकुल अधूरा प्राप्त है और ब्रजभाषा मिश्रित है। राजा लक्ष्मणसिंह, कृत शकुतला नाटक का अनुवाद बहुत ही सुन्दर हुआ है, पर वह अनुवाद है। इस प्रकार भारतेन्दु जी की मौलिक तथा अनुवादित रचनाओं ही से हिन्दी नाट्य-साहित्य का वास्तविक आरंभ कहा जा सकता