पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२१३

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२०४ भारतेंदु हरिश्चन्द्र के लिए तथा किसी स्थानिक नेशनल थिएटर' में अभिनीत किए जाने के लिए इसकी एक ही दिन में रचना हुई थी। इस कहानी को लेकर पहिले भी खेल होते थे पर वे इतने सुव्यवस्थित नहीं थे। इस प्रहसन की भाषा तथा पद्य साधारण पर अनेक प्रकार के लोगों पर हँसी हँसी में आक्षेप किया गया है । इस नाटक का उक्त सज्जन पर अच्छा प्रभाव पड़ा था और बाद को उन्होंने हिन्दी-प्रचारार्थ भारतेन्दु जी की सहायता ग्रंथ छपवाने में भी की थी। संस्कृत के सुप्रसिद्ध नाटककार विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस का अनुवाद क्रमशः सं०१६३१ के फाल्गुन मास की बालाबोधिनी की संख्या से छपना आरम्भ हुआ और प्राय: तीन वर्ष तक निकलता रहा। बाद को यह पुस्तकाकार प्रकाशित हुआं। यह नाटक राजनैतिक षड्यंत्रों से पूर्ण है। इसका प्रधान रस वीर है और कर्मवीरत्व के उपदेश से परिपूर्ण है। इस नाटक की कथा-वस्तु का आधार मौर्य साम्राज्य के संस्थापन के इतिहास से लिया गया है। इन नाटक का अनुवाद बहुत ही अच्छा हुआ है। भाषा प्रौढ़ तथा प्रांजल है। अनुवादक ने इस पर विशेष समय तथा मन लगाया था और यह उनकी नाट्य-रचनाओं में सबसे बड़ी भी है। इसकी भूमिका लिखने में भी अनु- वादक महोदय ने बहुत कुछ अनुसंधान किया है तथा देशीय और यूरोपीय भाषाओं के ग्रन्थों से सहायता ली है। तात्पर्य यह कि यह अनुवाद करके भारतेन्दु जी ने इस ग्रंथ की प्रसिद्धि द्विगुणित से भी अधिक कर दी है और यह चिरस्थायी ग्रंथ अब अमर हो गया है। इसका एक अनुवाद भारतेन्दु जी के समय ही में श्रद्धेय पं० मदनमोहन मालवीय के पितृव्य पं० गदाधर