पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२१४

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रचनाए २०५: मालवीय ने भी किया था पर इस अनुवाद को देखकर उन्होंने अपना अनुवाद नहीं प्रकाशित किया। अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध नाटककार शेक्सपियर के सुखान्त नाटक मर्चेट ऑव वेनिस का भारतेन्दु जी ने “दुर्लभ बंधु” (अर्थात् वंशपुर का महाजन ) के नाम से अनुवाद किया था। सं० १८३७ वि० ज्येष्ठ शुक्ल की हरिश्चन्द्र चन्द्रिका और मोहन चन्द्रिका में इसका प्रथम दृश्य छपा है, जिसमें केवल इतना लिखा है कि "निजबंधु बा० बालेश्वरप्रसाद बी० ए० की सहायता से और बँगला पुस्तक सुरलता की छाया से हरिश्चन्द्र ने लिखा ।" इस पत्रिका के संपादक भारतेन्दु जी के घनिष्ठ मित्र पं० विष्णुलाल मोहनलाल पंड्या थे। यह अनुवाद अपूर्ण था, जिसे पण्डित रामशंकर व्यास तथा बाबू राधाकृष्ण दास जी ने कुछ लोगों का कथन है कि यह अनुवाद भारतेन्दु जी का नहीं है प्रत्युत् बा० बालेश्वर प्रसाद बी० ए० कू । है, पर वे भूलते हैं । उक्त सज्जन का अनुवाद काशी पत्रिका खंड १ में “वेनिस का सौदागर' के नाम से प्रकाशित हुआ था। भारतेन्दु जी ने 'नाटक' में इसका उल्लेख किया है । वह स्यात् उदू भाषा मिश्रित था। भारतेन्दु जी के अनुवाद में यूरोपाय नामों को भी सुन्दर हिंदी रूप दिया गया है, जैसे ऐन्टानियों का अनत, पोरशिया का पुरश्री आदि । इस अनुवाद में उक्त दोनों सज्जनों से भारतेन्दु जी ने सहायता अवश्य ली थी तथा बंगाल के सुरलता से भी कुछ मदद लिया था, जिसे अनुवादक महोदय ने स्वयं स्वीकार पूरा किया था। किया है। सती प्रताप गीतिरूपक सावित्री सत्यवान के पौराणिक आख्यान को लेकर लिखा गया है । यह भी अपूर्ण रह गया था जिसे स्व० बा० राधाकृष्ण दास जी ने बाद को पूरा किया था ।