पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२१५

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। भारतेंदु हरिश्चन्द्र इसमें सात दृश्य हैं जिनमें चार भारतेन्दु जी के लिखे हैं और अंतिम तीन बा० राधाकृष्ण दास जी के । यह उपाख्यान स्त्रियो- पयोगी है और इसमें उन्हीं सावित्री का चरित्र-चित्रण हुआ है, जिनका वे प्रतिवर्ष वट-सावित्री के दिन पूजन करती हैं । पहिले दृश्य में अप्सराएँ पातिव्रत्य की प्रशंसा करती हैं, दूसरे में सावित्री-सत्यवान का प्रथम मिलन होता है, तीसरे में सावित्री का प्रेम दिखलाया जाता है और चौथे में नारद जी के सम- झाने से सत्यवान के पिता द्युमत्सेन अपने पुत्र का सावित्री से विवाह करना स्वीकार करते हैं। इसमें मनसा पतिवरण कर लेने पर दूसरे से न विवाह करने का प्रण करके भी माता पिता की आज्ञा पर ही इच्छा पूर्ति को छोड़ देने ही ने सावित्री शब्द को सती का पर्यायवाची आज तक बना रखा है। कहा जाता है कि लाला श्री निवासदास के तप्तासंवरण के प्रकाशित होने पर उसे पसंद न करके भारतेन्दु जी ने इसे लिखना प्रारम्भ किया था। भारतजननी बँगला के भारतमाता के आधार पर लिखी गई है । यह पहिले-पहल सन् १८७७ ई० के हरिश्चन्द्र-चन्द्रिका में प्रकाशित हुई थी। सन् १८७८ ई० के कवि-वचन -सुधा में एक विज्ञापन भारतेन्दु जी ने निकाला था, जिससे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि इसके अनुवादक उनके कोई मित्र थे और इसे उन्होंने शोधकर प्रकाशित किया है। इसमें 'भारत में मची है होरी' पद जून सन् १८८० ई० के प्रकाशित “मधुमुकुल' में छपा है जिसमें उनके पिता की तथा उनकी ही रचनाएँ संकलित हैं 'नाटक' में भी भारतेन्दु जी ने इसे स्वरचित लिखा है। सन् १८८१ ई० के १० अक्तूबर के कवि-वचन-सुधा में संपादकीय टिप्पणी इसी नाटक पर यों है कि 'इस आशय की प्रशंसा करने.