पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२१६

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नाम रचनाएँ २०७ में कुछ ईश्वरांश हुए बिना किस की सामर्थ्य है कि वह हिंदी भाषा के परमाचार्य कविवर श्री बा० हरिश्चन्द्र की प्रशंसा करे। ३१ दि० सन् १८८१ ई० के उचित वक्ता में बा० राधाकृष्ण दास ने विज्ञापन देते हुए इसे भारतेन्दु रचित लिखा है। हरिश्चन्द्र- चंद्रिका तथा मोहनचन्द्रिका ( कला ६ किरण ८, सं० १९३८ भाद्रपद ) में भी यह भारतेन्दु रचित लिखा गया है । अस्तु, संशोधन कार्य से भारतेन्दु जी ने इस रूपक. को बहुत कुछ अपना कर लिया है और मूल तीसरे ही इसलिए उक्त अनुवादक का ज्ञात होना ही समीचीन है। यह भारतेन्दु जी के सामने ही कई बार खेला जा चुका था और डुमरांव के दीवान राय जयप्रकाश लाल ने इन्हें लिखा था कि आपका नाटक "भारत जननी” यहाँ खेला गया था। माधुरी रूपक राव कृष्णदेवशरण सिंह की कृति है, जो भरतपुर-नरेश राजा दुर्जन साल के पुत्र तथा भारतेन्दु जी के अंतरंग मित्र थे । यह कविता में अपना “गोप" उपनाम रखते..थे। इस रूपक के एक पद का 'गोपराज' शब्द उन्हीं का द्योतक है । इनके सिवा बा० राधाकृष्ण दास जी ने नवमल्लिका तथा मृच्छकटिक दो नाटकों का भो नाम लिखा है पर वे अप्राप्य तथा अपूर्ण हैं। इस प्रकार लगभग डेढ़ दर्जन के छोटे बड़े नाटक लिखकर भारतेन्दु जी ने हिन्दी साहित्य के इस अंग के अभाव की कुछ पूर्ति कर जो नाट्य-परंपरा चलाई थी वह उनके बाद मंद पड़ गई थी। पर इधर कई सज्जनों ने वर्तमान रंगमंच के अनुकूल नाटक लिखना आरंभ कर उस परंपरा को विशेष गति से चला दिया है । भारतेन्दु जी ने नाटकों के इतिहास तथा नाटक रचना पर भी एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम