पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२२०

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राजभक्ति-विषयक २११ दिया था जिसके एक श्लोक का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार हुआ है- सब सजन के मान को कारन इक हरिचन्द । जिमि स्वभाव दिन रैन को कारन इक हरिचन्द ।। सन् १८७१ ई० में प्रिंस ऑव वेल्स के अस्वस्थ होने पर उनकी आरोग्य-कामना के लिए भारतेन्दु जी ने नौ दोहों में ईश्वर से प्रार्थना किया था, जिसका अंतिम दोहा इस प्रकार है- बेग सुनै हम कान सों, प्रिंस भए सानंद । परम दीन है जोरि कर, यह विनवत हरिचन्द ।। युवराज की स्वास्थ्य-प्राप्ति पर आनन्दोत्सव भी मनाया था। वही युवराज सन् १८७५ ई. के नवम्बर महीने में भारत में पधारे थे। भारतेन्दु जी ने विज्ञापन देकर संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, बँगला, गुजराती, तामिल, अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं की कविताएँ आमंत्रित की और उनसे 'मानसोपायन' नामक संग्रह तैयार किया था। यह संग्रह सन् १८७७ ई० के प्रारम्भ में प्रकाशित होकर इंग्लैण्डेश्वरी के भारत-सम्राज्ञी की पदवी ग्रहण करने के समय युवराज को भेंट किया गया था । श्री राजकुमार के शुभागमन के अवसर पर जो स्वागतपत्र लिखा था उसका आरंभ यों है- स्वागत स्वागत धन्य तुम, भावी राजधिराज भई सनाथा भूमि यह, परोसे चरन तुव आज ॥ अंत में आशीर्वादात्मक ग्यारह दोहे दिए हैं, जिसका आखिरी दोहा यों है- भ्रात मात सह सुतन युत, प्रिया सहित युवराज । जियो जियो जुग जुग जियो भोगो सब सुख साज ॥