पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२२१

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राजक्ति-विषयक २१३ अमीर होने पर अंत हुआ। संधि के बाद का युद्ध तृतीय अफ- गान युद्ध के नाम से भी इतिहासों में पाया जाता है। इस युद्ध के आरम्भ होने का समाचार पाते ही भारतेन्दु जी ने 'भारत- चीरत्व' नामक छोटा-सा काव्य लिख कर हिन्दुस्तानी नरेशों से ब्रिटिश सेना को सहायता देने के लिये प्रार्थना की थी। लिखा था कि- जिन जवनन तुव धरम नारि धन तीनिहुँ लीनो। तिनहू के हित प्रारज-गन निज असु तजि दीनो॥ तौ इनके हित क्यो न उठहु सब बीर बहादुर । पकरि पकरि तरवार लरहु बनि युद्ध चक्रधुर ।। इसके अनन्तर इसी अफगान युद्ध में विजय प्राप्त होने पर विजयवल्लरी' बनी। इन दोनों में ब्रिटिश राज्य के सुख की मुस्लमानी राज्यकाल से तुलना की गई है। सन् १८८० ई० में मारक्विस ऑव रिपन भारत के बड़े लाट नियत हुए और इस पद पर सन् १८५४ ई. के अंत तक रहे। भारतवासियों में इन बड़े लाट के प्रति अत्यंत श्रद्धा थी और यह बड़े प्रजाप्रिय हो गए थे। इनके किसी पूर्वाधिकारी के भाग्य में ऐसी प्रसिद्धि नहीं लिखी थी। भारतेन्दु जी ने एक अष्टक इनके नाम पर लिखा था जिसका एक छप्पय यों है- जदपि बाहुबल क्लाइव जीत्यो सगरो भारत । जदपि और लाटनहू को जन जदपि हेस्टिंग आदि साथ धन लैगे भारी । जदपि लिटन दरबार कियो सजि बड़ी तयारी ॥ पै हम हिन्दुन के हीय की, भक्ति न काहू सँग गई । सो केवल तुमरे सँग रिपन, छाया सी साथिन भई । नाम उचारत ॥