पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२२२

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२१४ भारतेंदु हरिश्चन्द्र सन् १८८२ ई० में भारतेश्वरी कीन विक्टोरिया के एक घातक की गोली से बच जाने पर भारतेन्दु जी ने चौकाघाट पर स्थित अपने बाल्यकाल के हितैषी मित्र बा० गोकुलचन्द खत्री के बाग़ में उत्सव मनाया था। अपने स्कूल के बालों द्वारा मङ्गल- गान कराया तथा उसके बाद कविताएँ पढ़ी गई। एक प्रहसन का अभिनय तथा गान हुआ था। इसकी सूचना पर क्वीन तथा बड़े लाट ने प्रसन्नता प्रकट की थी। एक समाचार-पत्र ने लिखा था कि "बनारस में श्रीमान् भैया बाबू सभी लायल सब्जेक्ट हैं पर ऐसे अवसरों में जैसा कुछ बाबू साहब से बनता है दूसरे को नहीं सूझता।" मिश्र देश में विदेशी सत्ता का विरोध करने के लिये अरबी पाशा ने मंत्रिमंडल में अपना एक स्वतंत्र देशभक्त दल बना लिया था, जिसने बाद को सभी यूरोपीय कृति के विरुद्ध घृणा का रूप धारण कर लिया। जून सन् १८८२ ई० में यह विरोध विद्रोह में परिणत हो गया और विद्रोहियों ने अलक्जेंड्रिया के कुल इसाइयों को निकाल बाहर किया। इंग्लैंड ने सभी यूरोपीय शक्तियों तथा तुर्की के सुलतान को उसे दमन करने में सहयोगी बनने के लिये लिखा पर किसी के स्वीकार न करने पर उसने अकेले युद्ध आरम्भ कर दिया। भारतीय सेना भी युद्ध के लिये भेजी गई थी। तेलेल कबीर युद्ध में भारतीय सेना बाईं ओर से जेनरल मैकफर सन के अधीन लड़ी थी। भारतीय सेना ने शत्रु का पीछा कर उसी दिन दोपहर को जिगज़िग ले लिया और उसके अनन्तर संध्या को वेलवैस पहुँच गई । चौबीस घंटे बाद कैरो लेने में भी इस सेना ने योग दिया, जहाँ अरबी पाशा के ससैन्य शस्त्र रख देने से यह युद्ध समाप्त हो गया । इसी युद्ध की विजय वार्ता पर 'विजयिनी विजय वैजयंती' बनी। २२