पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२२८

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भारतेन्दु हरिश्चन्द महाप्रभु, नंद, प्रकाश तथा स्वरूप-~का भी उल्लेख किया गया है। 'वल्लभीय सर्वस्व' छोटा-सा ग्रन्थ है, जिसमें केवल श्री वल्लभाचार्य महाप्रभु के विषय में कुछ विस्तार से लिखा गया है । इसमें उनकी जीवनी तथा उनके स्वमत-प्रचार का वृत्तांत दोनों दिया गया है। 'तदीय सर्वस्व' श्री नारदीय भक्तिसूत्र का व्याख्या-युक्त अनुवाद है । पहिले यह 'हरिश्चन्द्र मैगजीन' की पाँचवीं संख्या में सन् १८७४ ई० के फरवरी में मूल तथा अर्थ सहित प्रकाशित हुआ था। उसके अनंतर प्रत्येक सूत्र की विस्तृत व्याख्या लिख कर यह ग्रन्थ प्रस्तुत किया गया। ग्रन्थकार ने परमेश्वर- प्राप्ति के परम साधन प्रेममार्ग दिखाने के लिए ही यह ग्रन्थ लिखा है । 'सारी सृष्टि के एक स्रष्टा का भिन्न-भिन्न नाम रख कर जो मत-मतान्तर तथा विद्वेष फैला हुआ है, उसी विषमता दूर करने को इस ग्रन्थ का आविर्भाव है।' 'भक्तिसूत्र-वैजयंती' पहिले हरिश्चन्द्र मैगजीन के अक्तूबर, नवम्बर तथा जनवरी की संख्याओं में प्रकाशित हुई थी। श्रुतियों के बाद मूल सूत्रों का बहुत आदर है। भक्तिशास्त्र पर श्री नारद तथा शांडिल्य ऋषि के सूत्र सर्वमान्य हैं । इन्हीं में दुसरे का व्याख्या-युक्त अनुवाद ही यह ग्रन्थ है । इसमें सौ सूत्र हैं और भक्ति की महत्ता दिखलाई गई है। ग्रन्थ के अंत में 'दैन्य-प्रलाप' नाम से आठ पद भी इसमें दिए गए हैं। 'सर्वोत्तम स्तोत्र भाषा' में श्री वल्लभाचार्य महाप्रभु के एक सौ आठ नाम दिए गए हैं। यह गोस्वामी श्री विठ्ठलनाथ जी रचित स्तोत्र का अनुवाद है । 'उत्तरार्द्ध भक्तमाल' में एक सौ इकतालीस छप्पय तथा सत्तर दोहे हैं। अंत में एक श्लोक भी