पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२३

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१० भारतेंदु हरिश्चन्द्र अनेक कातरोक्तियों के साथ नवाब की अनुग्रह भिक्षा प्राप्त करने के लिये राजा मानिकचंद से प्रार्थना की गई थी। उसी आशय का दूसरा पत्र राय दुर्लभराम के नाम भी गिरा दिया गया और संधि का झंडा भी खड़ा किया गया। इन पत्रों के फलरूप नवाबी सेना की ओर से एक मनुष्य सुलह का झंडा लेकर आया। अभी बातचीत हो रही थी कि कुछ अंग्रेजों ने जो पीकर उन्मत्त हो रहे थे, पूर्वी फाटक खोल दिया। इसमें से नवाबी सेना भीतर घुस आई और २१ जून को कलकत्ते पर अधिकार हो गया। अंग्रेज़ सब पकड़े गए। संध्या के समय पाँच बजे दरबार हुआ जिसमें अमीनचंद और कृष्णदास जी सामने लाए गए । नवाब ने क्रोध न प्रकाश कर इनसे आदरपूर्ण व्यवहार किया। इसके अनंतर वह घटना घटी, जो कालकोठरी की हत्या' के नाम से छोटे-मोटे इतिहासों में पाई जाती है। बार अक्षयकुमार मित्र ने इसका युक्तिपूर्ण खंडन किया है। इस कहानी को पहिले-पहिल कहने वाले हॉलवेल ने अमीनचंद पर यह भी दोष लगाया था कि इन्हीं ने अंग्रेजों द्वारा अपने पर किय गए निर्दय व्यवहार का बदला लेने के लिए राजा मानिकचंद से कह कर अंग्रेजों की यह दुर्गति कराई थी। पर जिस प्रकार इनकी पहिली उक्ति भूठी साबित हो चुकी है, उसी प्रकार इनकी यह दूसरी उक्ति भी ग्राह्य नहीं है। कलकत्ते की लूट से जो कुछ प्राप्त हुआ था वह नवाब के आशानुरूप नहीं था। अन्य देशी महाजन अपने धन-सामान को हटा सके थे, पर अमीनचंद अंग्रेजों के कठोर व्यवहार से ऐसा नहीं कर सके, इससे उनके कोष से चार लाख रुपया सिक्का तथा १ दो एक अंग्रेज़ी रिव्यूत्रों में इसके मंडन का इधर कुछ प्रयास होता हुआ दिखलाई दे रहा है।