पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२३४

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२२६ [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र प्रेममालिका में निन्यानबे पद संगृहीत हुए हैं। इसमें एक तो लीला-सम्बन्धी, दूसरे दैन्य भाव के और तीसरे परम प्रेममय पवित्र अनुभव के हैं । ये सभी पद अत्यंत सरल भाषा में हैं और प्रेम से परिप्लुत हैं । उपालंभ, कटूक्ति, विनय सभी अनूठे हैं। प्रेमतंरग बड़ा संग्रह है । इसमें एक सौ अड़तालिस पद हैं। इसके प्रायः सभी पद साधारण सांसारिक प्रेम के हैं, कुछ कृष्णलीला सम्बन्धी भी हैं। इनमें दो-एक पंजाबी भाषा के भी पद हैं। एक बारहमासा तथा कई लावनियाँ और ग़जल भी संगृहीत हैं । छियालिस बंगाली पद हैं, जिनमें 'चन्द्रिका' उपनाम दिया हुआ है । एकतालिस दोहों का 'प्रेम सरोवर' अनूठा पर छोटा संग्रह है। इसकी भूमिका, जो सं० १६३० की अक्षय तृतीया को लिखी गई थी, प्रेमरस से लबालब भरी है। इसकी रचना 'प्राननाथ के न्हान हित' हुई है, इसलिये वहाँ तक पहुँचने के प्रेम-मार्ग की दुरूहता चौदह दोहों में बतलाई गई है । इसके अनंतर जलाशय की शोभा का वर्णन सात दोहों में हुआ है। सात दोहों में प्रेम का महत्त्व बतलाया गया है, और सात ही दोहों में प्रेम का किन में अभाव होता है, यह बतला कर अन्तिम चार दोहों में सच्चे प्रेम की परिभाषा की गई है। 'होली' संग्रह में उन्यासी पद हैं, जो होलिकोत्सव के अव- सर पर गाने योग्य हैं। दूसरा संग्रह 'मधुमुकुल' अर्थात् होली के पदों का संग्रह सं० १९३७ के फाल्गुन में तैयार हुआ था। इसका उसी वर्ष जो संस्करण हुआ था, उसमें ग्यारह पद भार- तेन्दु जी के पिता के तथा संस्कृत का एक पद गोपाल शास्त्री का संगृहीत था। इनके सिवा एक सौ बाईस पद भारतेन्दु जी के हैं, जिनमें एक संस्कृत का और चार-पाँच पंजाबी के हैं दो-चार गजल आदि भी स्वरचित बन्दर-सभा से भी इस .