पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२३९

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स्फुट ग्रन्थ तथा लेख] २३१ अपुनो अपुनायो जानि के करहु कृपा गिरवरधरन । जागो बलि बेगहि नाथ अब देहु दीन हिंदुन शरन । इक्कीस पयार छंदों में प्रातसमीरन' का अच्छा वर्णन मृदु शब्दावली में किया गया है। प्रातःकालीन वायु लगने से संसार के सजीव हो जाने का स्निग्ध वर्णन इस बँगला छंद में दिया गया है। 'कृष्णचरित्र' में छिआलिस पद, तीन कवित्त और दो सवैये हैं। गंगा जी की महिमा के आठ दस पदों को छोड़ कर बाकी सब कृष्ण जी के चरित्र-वर्णन में हैं। स्फुट ग्रन्थ तथा लेख परिहास-प्रिय भारतेन्दु जी की विनोदपूर्ण रचनाओं में व्यंग्य-मिश्रित आक्षेप तथा उपदेश दोनों ही रहते थे। 'परिहास- पंचक' में ज्ञाति विवेकिनी सभा, स्वर्ग में विचार सभा, सबै जाति गोपाल की, बसंत-पूजा और खंड-भंड संवाद पाँच लेख हैं। पहिले में एक गड़ेरिये को क्षत्रिय होने की व्यवस्था मिली है, जिस पर प्रसन्न हो दक्षिणा देकर वह सपत्नीक गाता है- श्राव मेरी जानी सकल रस खानी। धरि कँध बहियाँ नाचु मन मानी ॥ मैं भैलों छतरी तू धन छतरानी। अब सब छुटगै रे कुल केर कानी । धन धन बम्हना लै पोथिया पुरानी। जिन दियो छतरी बनाय जग जानी ॥ दूसरा लेख स्वामी दयानन्द तथा केशवचन्द्र सेन की मृत्यु पर लिखा गया था, जिसका अंग्रेजी अनुवाद 'क्रानिकल पत्र' में छपा था । उस विचार सभा में यह प्रश्न उठाया गया था कि उक्त दोनों सज्जनों को स्वर्ग में स्थान मिलेगा या नहीं। इस पर