पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२४

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पूर्वज-गण ११ बहुत सा सामान प्राप्त हुआ था। कंपनी का बहुत-सासामान घट- बढ़ गया था, जिससे केवल बीस लाख रुपये का माल कलकत्ते में बच गया था। इन सबको भी अधिकांश सैनिकों ने लूट लिया था, जिससे नवाब के कोष में बहुत ही कम लूट पहुँच सकी थी। इसके अनंतर ३००० सैनिकों के साथ राजा मानिकचंद को कलकत्ते में छोड़ कर दूसरी जुलाई को नवाब लौट गये। कलकत्ते का नाम अलीनगर रखा गया । लौटने के दो तीन दिन पहिले नवाब ने अंग्रेजों को शहर में अपने अपने घर जाने की आज्ञा दे दी, जहाँ अमीनचंद ने उनके खाने-पीने की सब व्यवस्था कर दी थी। स्यात् इन्हीं के अनुनय-विनय से अंग्रेजों को यह आज्ञा मिली थी। परन्तु एक पियक्कड़ सरजेंट ने एक मुसलमान को मार डाला, जिस पर क्रुद्ध हो नवाब ने आज्ञा दी कि कोई भी यूरोपियन उसके राज्य में न रहे । ऐसी आज्ञा होते ही सभी अंग्रेज़, फ्रेंच तथा उच्च अधिकारी फैक्टरियों को भाग , गये। इस प्रकार कलकत्ते से निकाले जाने पर अंग्रेजों ने फलता में डेरा डाला और वहीं से सहायता के लिए मंदराज और बंबई की कोठियों को लिखा । २२ अगस्त को रहूनिया स्कूनर नामक जहाज पर कौंसिल बैठी जिसमें खोजा पैट्रोस के द्वारा प्राप्त अमीनचंद का पत्र पढ़ा गया। इसमें इन्होंने अंग्रेजों की सहायता करने का बचन दिया था। अमीनचंद की सहायता से राजा मानिकचंद भी. अंग्रेजों के पक्ष में हो गये और ५ वीं सितम्बर को उनका एक पत्र भी आया, जिसमें उन्होंने सहायता करने का वचन दिया था तथा बाजार खोलने की आज्ञा का 'दस्तखत' भी भेजा था। मंदराज से लार्ड क्लाइव के अधीन सहायता भी आ पहुँची । २७ दिसम्बर को अंग्रेज़ी सेना फलता